हिन्दुस्तान अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार विद्युत प्रकाश मौर्य नहीं रहे

ख़बर है कि हिन्दुस्तान अख़बार, नोएडा में बतौर मुख्य उप—संपादक कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार विद्युत प्रकाश मौर्य अब नहीं रहे। करीब एक माह से कोरोना से संघर्ष करते हुए पटना के एक अस्पताल में उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया और खुद किसी और दुनिया में चले गए। लेकिन, विद्युत के जानने वालों के लिए अभी भी यह सत्य नहीं है कि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। विद्युत हैं, यही हैं और विद्युत की गति से वह हर एक के मन में कौंध रहे हैं। उनकी यादें जीवंत हो रही हैं। सोशल मीडिया से लेकर मोबाइल पर एक—दूसरे से बातचीत के दौरान विद्युत के चाहने वाले उन्हें इतना याद कर रहे हैं, जितना पहले कभी नहीं किया। आज विद्युत उतना है, जितना पहले कभी नहीं थे। वह यहीं हैं, हमेशा के लिए यहीं हैं… अपने परिवार के साथ, अपने दोस्तों की यादों में, अपने ​लेख में, अपने ब्लॉग दाना पानी और लाल किला पर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और आईआईएमसी के एल्मुनी के तौर पर, गूगल पर, हर जगह। वे इतनी भूमिकाओं में और इतनी जगह हैं कि आप उन्हें कहीं भी पा सकते हैं। एक पत्रकार के तौर पर, एक रिसर्चर के तौर पर, एक शिक्षक के तौर पर, एक ब्लॉगर के तौर पर, एक फोटोग्राफर के तौर पर, एक ट्रैवलर के तौर पर या फिर सबसे अधिक एक अंच्छे इंसान के रूप में। आप बस एक क्लिक कीजिए और वह गूगल पर उसी मुस्कराती अदा के साथ हाजिर हो जाते हैं। का हो! का हाल बा?

वरिष्ठ पत्रकार विद्युत प्रकाश मौर्य

ख़बर यह भी है कि सभी के चहेरे पत्रकार विद्युत प्रकाश मौर्य को पटना के गुलबी घाट पर अंतिम संस्कार किया गया, जहां उन्हें अंतिम विदाई दी गई। बेटे अनादि ने मुखाग्नि दी। क्या कहा? अंतिम विदाई? नहीं! जो गया ही नहीं, उसकी कैसी विदाई? पत्रकारिता जगत के पतझड़ में विद्युत नाम के ही तो कुछ बहार हैं जो संकट के समय में हर किसी के इनबॉक्स में होते हैं। ​कॉरपोरेट और प्रोफेशनल की नई सीढ़ियां चढ़ रहे पत्रकारिता जगत में वे अभी भी किसी के दोस्त, भाई, अंकल ही हैं। किसी के लिए चलते—फिरते इनसाइक्लोपीडिया तो किसी के लिए मार्गदर्शक। किसी के लिए बेहतरीन साथी तो किसी के लिए उम्दा इंसान। वह वाकई इतना, इतने रुपों में कभी सबके सामने नहीं आए, जितना अभी हैं। वे हमेशा लो प्रोफाइल रहे, लेकिन यदि आप गूगल पर जाइए और विद्युत प्रकाश मौर्य टाइप कीजिए तो उनकी प्रोफाइल कहां नहीं है? वे हर जगह हैं। वे अब लो प्रोफाइल से हाई—प्रोफाइल शख्सियत बन चुके हैं, जिनकी चर्चा हर जगह, सर्वत्र हो रही है।

बड़े घुम्मकड़, उतने ही बड़े गाइड

बिहार के सासाराम के सोहवलिया गांव निवासी विद्युत प्रकाश मौर्य जहां गए, वहीं के हो लिए। देश का शायद ही कोई स्थान है, जहां वह नहीं हैं, जहां से उनकी तस्वीरें नहीं हैं। गूगल के हाई रेटेड के इस ट्रैवलर ब्लॉगर और गाइड ने हर किसी को उन गुमनाम स्थानों के बारे में भी बताया, जिसके बारे में वे किताबें भी खामोश रहीं, जो सबकुछ बयां करती हैं। जब किसी को कोई पता न मिले तो वह गूगल पर ढूंढ़ता है लेकिन विद्युत गूगल को पता बताते रहे। वह गूगल पर दसवें लेवल के गाइड हैं। एक लाख 12 हजार 51 प्वॉइंट हासिल हैं। वह गूगल को देशभर से 19572 तस्वीरें दे चुके हैं, जिन्हें कोई भी देख सकता है। चार करोड़ 81 लाख 1438 लोग इन तस्वीरों के जरिए उन जगहों का भ्रमण कर चुके हैं, बाकी करते रहेंगे। आप भी यदि जायजा लेना चाहें तो गाइड विद्युत प्रकाश मौर्य पर क्लिक कर सकते हैं।

विद्युत के शौक

आम तौर पर लोगों के शौक उनकी रईसी बताते हैं। लेकिन, विद्युत प्रकाश मौर्य के शौक उनकी शानोशौकत नहीं, बल्कि उनका सरल व्यक्तित्व बताते हैं। उनके अधिकतर शौक वैसे हैं, जिन्हें शौक से अधिक स्वभाव कहा जाना चाहिए। उनकी फेवरिट फिल्म्स थी गाइड और मेरा नाम जोकर। जी हां, वही वाला मेरा नाम जोकर जिसमें वह गाना है… जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां…? तो फिर यह फिल्म, यह गाना जिस विद्युत का फेवरिट है, वह कहां जाने वाले हैं? वह यहीं हैं, यहीं हैं! गजल जगजीत सिंह के पसंद हैं। किताबों का क्या बताएं, हर हफ्ते वह ​एक किताब पढ़ जाते। बावजूद, शरतचंद्र की लिखी श्रीकांत उनकी सबसे पसंदीदा किताब है।

विद्युत और माधवी

ब्लॉगर विद्युत

विद्युत प्रकाश मौर्य को ब्लॉग लिखने का बहुत शौक है। इतना कि पूछिए मत। ब्लॉग पर उनका प्रोफाइल जनवरी 2006 से हैं, लेकिन वह लिखते इसके बहुत पहले से रहे हैं। मूव एराउंड ग्लोब, दाना—पानी, और लाल किला के नाम से वह अपने ब्लॉग लिखते रहे हैं। मूल एराउंड ग्लोब पर कुछ ही लेख हैं, जबकि लाल किला पर अंतिम लेख उनका 4 अप्रैल 2021 का है। यह लेख शशिकला पर है, शीर्षक है— शशिकला – हिंदी फिल्मों की बुरी औरत। लेकिन, विद्युत के ब्लॉग दाना—पानी पर वह सबसे अधिक मौजूं हैं। दाना—पानी पर वह लिखते हैं— ज़िंदगी के सफर में क्या चाहिए, थोड़ा सा दाना थोड़ा सा पानी। अब भला ऐसे शख्स के सफर को कौन रोक सकता है, जिसे सफर में होने के लिए बस थोड़ा सा दाना और पानी चाहिए? तो विद्युत हैं, अपने दानापानी के साथ। वे ख़बरें झूठी हैं जो उनके नहीं होने की अफवाह फैला रही हैं, वे लोग झूठे हैं जो कहते हैं कि उनका तो दाना—पानी उठ गया। उनका दाना—पानी 1477290 व्यूज के साथ गूगल पर मौजूद है। इस पर अंतिम आलेख 29 मई 2020 को है— भैरोनाथ मंदिर और साधुओं की ध्यान गुफाएं। वे इसमें बताते हैं कि केदारनाथ धाम दर्शन का ​जानकारी दे रहे हैं। देश मंथन पर भी उनके आर्टिकल की भरमार है।

विद्युत बेटे अनादि के साथ।

आईआईएमसी को जिन पर फख्र है

विद्युत प्रकाश मौर्य ने 1995-96 बैच से आईआईएमसी से पत्रकारिता की डिग्री ली थी। वह इस संस्था में भी मौजूं हैं। आईआईएमसी से यूं तो लाखों छात्र निकले लेकिन जिन पर फख्र है इस संस्थान को, उन कुछ में से हैं विद्युत। विद्युत व्यस्तता के बावजूद हर उस जगह पर मौजूद होते हैं, जहां वह एक बार भी जा चुके हैं। लिहाजा, वह आईआईएमसी में पहले छात्र और बाद में बतौर अल्मुनी सक्रिय रहे। सक्रियता का सबूत है यह ट्वीट—

और हमेशा होने के लिए काफी है यह स्मृति

बीएचयू याद करता है…

बीएचयू यानि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को कौन नहीं जानता? इसी तरह कहा जाता है कि बीएचयू में विद्युत प्रकाश मौर्य को कौन नहीं जानता? आप बीएचयू वाले विद्युत को जानने के लिए एकेडमिया पर क्लिक कर सकते हैं। इस पर विद्युत प्रकाश मौर्य का रिज्यूमे पड़ा है, जो बताता है कि वह कहां—कहां हैं!

पढ़ाकू विद्युत

17 दिसंबर 1973 को जन्मे विद्युत अपने साथियों के बीच में हंसी—मजाक में भी जानकारियों का पिटारा खोल पड़ते हैं। किसी शब्द का ​जिक्र आया नहीं कि वे उस बारे में पूरा व्याख्यान दे डालते हैं। इसलिए नहीं क्योंकि वे वाचाल हैं, बल्कि इसलिए कि वे विद्वान हैं। वे पढ़ाकू हैं, वे लिक्खाड़ हैं। विद्युत ने हाई स्कूल की पढ़ाई बिहार के वैशाली से की। यहां के आरएचएस जन्दाहा से 1987 में उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास की। लंगट सिंह कॉलेज मुजफ्फरपुर से 1989 में बायोलॉजी से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वह बीएचयू पहुंच गए। 1993 में उन्होंने इतिहास से आॅनर्स किया। इसी साल बीएचयू से ही फोटोग्राफी का सर्टिफिकेट कोर्स किया। 1995 में उन्होंने बीएचयू से ही इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री ली। यहां से वह आईआईएमसी आ गए, जहां से उन्होंने 95—96 में उन्होंने पीजी डिप्लोमा इन ​जर्नलिज्म कोर्स किया। 98 में उन्होंने मास कॉम में ही नेट उत्तीर्ण किया। लेकिन, वह इसके बाद भी नहीं रुके। 1999—2000 में मास कॉम में मास्टर डिग्री लेकर ही मानी। इसके बाद वह लगातार रिसर्च करते रहे। लगातार पढ़ते और लिखते रहे।

विद्युत प्रकाश मौर्य पत्नी माधवी और बेटे अनादि के साथ।

पत्रकारिता का विशाल अनुभव

विद्युत पत्रकारिता में अनायास नहीं आए थे, जैसा कि अधिकतर लोग आ जाते हैं। उन्हें यहीं आना था, यहीं होना था। वह पत्रकारिता के लिहाज से हर तरह से फिट थे, भले ही कई बार आज की पत्रकारिता उनके हिसाब से फिट नहीं बैठ पाती थी। विद्युत के 1200 से अधिक आर्टिकल छप चुके हैं। टेलीविजन मीडिया पर छोटा परदा, बदलता चेहरा नाम का उनका एक किताब प्रकाशनाधीन है, जिसकी जिम्मेदारी अब उनके चाहने वालों के हवाले है। विद्युत ने दिल्ली प्रेस के लिए बीएचयू के रिप्रजेंटेटिव के तौर पर लेखन की शुरुआत की। हालांकि उसके पहले हिंदी प्रचारक संस्थान, वाराणसी से भी जुड़ाव रहा। दिल्ली प्रेस के बाद विद्युत ने बतौर जूनियर सब एडिटर कुबेर टाइम्स ज्वॉइन किया। वह 1996 से 99 तक यहां रहे। इसके बाद वह जालंधर अमर उजाला में जूनियर सब एडिटर हो गए। 1999 से जून 2001 तक वह यहां कार्यरत रहे। इसके बाद उन्होंने दैनिक जागरण का रुख किया। जून 2001 से अप्रैल 2005 तक वह यहां कार्यरत रहे। जालंधर और लुधियाना जागरण में उन्होंने बतौर जेनरल डेस्क इंचार्ज के तौर पर बखूबी कार्य किया। इसके बाद दैनिक भास्कर पानीपत में वह सीनियर सब एडिटर हो गए, जहां जनवरी 2007 तक कार्य किया। इस बीच वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया दोनों में कार्य करते रहे, क्योंकि उनकी दोनों ही माध्यमों में बराबर पकड़ थी। वेब दुनिया, आज तक, महुआ, ई टीवी, लाइव इंडिया में भी उन्होंने कार्य किया। एमडीएलआर ग्रुप के चैनल यूपी न्यूज में वह 2011—12 में सीनियर प्रोड्यूसर रहे। फिलहाल, वह हिन्दुस्तान, नोएडा से मुख्य उप—संपादक की जिम्मेदारी से हमेशा के लिए मुक्त हो गए हैं।

मनहूस कोरोना

विद्युत अप्रैल में कोरोना संक्रमित हो गए तो 20 अप्रैल को वह दिल्ली से पटना चले गए। हालत गंभीर हुई तो अगमकुआं के एक निजी अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया। तबीयत और बिगड़ी तो 22 मई को उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। लेकिन, मंगलवार शाम को उन्होंने इस वेंटिलेटर को छोड़ दिया। वह अपनी सांसों के साथ निकल गए। और छोड़ गए पत्नी माधवी व पुत्र अनादि को। अनादि यानि ​जिसका अंत नहीं है। ऐसे में अनादि के रचयिता का अंत कैसे हो सकता है। विद्युत हैं, यहीं हैं!

Vidyut Prakash Maurya

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