16 अगस्त 2018, शाम पांच बजकर पांच मिनट पर देश ने अपने प्रिय नेता को खो दिया। लेकिन अपने पूरे जीवनकाल में वे अपने काम, प्रतिभा, व्यक्तित्व और अपनी कविताओं के ज़रिए हमें अटल यादें देकर गए। हम बात कर रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की।
…तो आइए आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर उनकी इस कविता के ज़रिए उन्हें याद करते हैं।
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोककर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई!
Unbiased India की टीम और सभी पाठकों की ओर से कलम के जादूगर और महान नेता अटल बिहारी वाजपेयी को विनम्र श्रद्धांजलि।