Dear पापा… हर दिन इज ‘तोहार’


आकृति विज्ञा ‘अर्पण’

कहाँ से शुरू करें और कहां खत्म करें, ये सोचना भी मेरे बस का नहीं, लेकिन मनबढ़ तो हूँ। अब आप कर भी का सकते हैं, काहें कि ये वाली मनबढ़ई मुझे अपने हक़ की बात लगती है।

पापा जी,
आपके पापा अर्थात् हमरे पिताजी (दादा जी), मम्मी के पापा मने हमरे नाना जी सब लोगों के साथ हो रहे अनोखे अनुभवों से पिता शब्द के अपरिमित व्यापक रूप को महसूसने का अलग ही सुख है।

बचपन में जब हम बच्चे लड़ाई करते थे तो एक बार रक्की कुछ बोला था लाइक तोहार बाप पता नहीं क्या क्या, उस समय वो चिढ़न हुई कि पूछो मत। फिर तो याद आता है कि अगले बार कोई भी गेम शुरू हो उससे पहले खेल की वैधानिक चेतावनी जारी होती थी…..

“न बड़ भाषा हमरी बाटे न बड़ बाटे बोली
बाप के बारे में कुछ्छू बोलल मारब दन दे गोली”

… असल में सच में पिता पर कुछ कह पाना बड़ा मुश्किल है। यदा—कदा मैने पापा को रोते देखा हो, जैसे कि रामायण में जब सीता जी की विदाई हो रही थी तब डबडबाई आँखे कितना कुछ कह गयीं।

घर में छोटी—छोटी बातों पर सबका धैर्य टूटने लगता है तब बस एक ही वाक्य ‘हम बाटीं ने?’ दुनिया की सबसे आशावादी पंक्ति होती है।

पापा, कभी आपने तो जताया ही नहीं कि आप हम सबको इतना प्यार करते हैं जैसा कि बाकी बाकि रिश्तों का साहित्य भी लंबा—चौड़ा उपलब्ध है उस तरीक़े से मुझे कोई कविता भी नहीं याद जो आपके लिये कहूं और जो याद है वो आपको बखान ही नहीं पाती।

मुझे याद आता है जब मैं एंकरिंग के लिये बाहर से देर रात आती थी और हमारी सोसायटी के लिये यह बिल्कुल नया और खारिज़ करने जैसी बात थी उस समय पापा से डांट ही नहीं लगी, और यदा—कदा की डांट कम भनभनाहट ज्यादा जिसमें कभी समाज क्या कहेगा, यह चिंता नहीं होती थी। उनकी बस इतनी चिंता होती थी कि मेरा भविष्य न बिगड़े, मैं डेवियेट न होऊं।

जब हम सबने गाँव छोड़ा था तो एक वाक्य मैने सुना था कि ‘दूबे जी की बेटियां बहुत कुछ कर ले जायेंगी।’, जिस गाँव में शिक्षा को प्राथमिकता देना कठिन हो वहां पर बेटियों के एजुकेशन खातिर विवाद भरे माहौल को छोड़ने के साथ अपनी पूंजी, अपना जवार अपना जाने क्या क्या छोड़ना कठिन निर्णय होता है जो आपने बड़ी सहजता से लिया ऐसा हमें लगा था लेकिन बाद में पता चला कि यह आपके सबसे कठिन और बड़े निर्णयों में एक था।

लिखूं तो लिखती ही रहूं, लेकिन हमसे इतना तो होने से रहा लेकिन आपके धैर्य की दाद देनी जरूरी होती है तब जबकि आप हमारी खातिर टेस्ट मैच भी देख ले जाते हैं। उससे भी बड़ा धैर्य जब मैं कुंभकर्ण मोड में सोती थी (अब सुधर गयी हूँ) तब कितने बार जगाते थे आप इसके लिये आपको जागरूक रत्न मानती हूँ मैं।

आपने बहुत से इनोवेशन किये हैं जिसकी कोई गणना ही नहीं, आपने घर का ड्राइंग रूम कल्चर बदला है जहां जेंडर जैसे शब्द को आपने प्राथमिकता से हटाया है और यह उस समाज में बहुत कठिन था लेकिन इसका श्रेय स्वयं आपके उत्तम चरित्र को जाता है। लेकिन जो भी हो आपके भनभनाने की अदा की तो मैं जब्बर फैन हूँ जो भोजपुरी से शुरू होकर पता नहीं कितनी भाषाओं को नापती है।

चेहरा मोहरा से लेकर दो चार लक्षण सीधे मुझपर कृपा बनकर अपना छोड़कर मेरी अपनी संपत्ति में गिने जाने की श्रेणी में है जो मेरे लिये सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में एक है। बाकी जब मुझे आप बोका बसंत कहते हैं तो मैं दुनिया की सबसे इंटेलीजेंट बेटी होती हूँ और जब आप ये कहते हैं कि ‘तू कब्बो न सुधरबू’ तब मैं समझ जाती हूँ कि यही निश्चिंतता मेरा संबल है।
जब आप मम्मी से कहते हैं ‘जाये द जवन करी करे द’ तब मैं और निर्भिक हो जाती हूँ और पता चल जाता है कि जो भी होगा अच्छा होगा।

आपके साहित्यिक समाज के प्रति प्रेम ने मुझे महुआडाबर में सोचने पर विवश कर दिया था जब आप मुझे पहली बार सुन रहे थे और आपने स्वयं वहां की जनता को वचन दिया कि ‘जब भी साहित्यिक अनुष्ठान ठनेगा हम सबसे आपकी जो भी अपेक्षा होगी वह पूर्ण की जायेगी…’यह एक लंबे समय की ख़ूबसूरत ज़िम्मेदारी है जो मुझे बहुत ही पसंद आयी।

जब आप थोड़े गुस्से में यह कहते हैं कि ‘तूहार जवन मन तवन कर’ तब सच कहूं तो हँसी भी आती है और फिर तो हमारी लड़ाई भी हो जाती है और मन में दोनों लोग जानते हैं कि यह मामला सुधरने वाला नहीं।

बहुते लिखा गया, ज्यादा होगा तो आपे कहेंगे ‘छोड़ जाये द एकदम पागलि हे’ इसीलिये लेखनी को विराम देते हुए बस यही कहेंगे कि हम लोगों को कहते—सोचते अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो गये हैं आप। यह अच्छी बात नहीं और आप बात भी नहीं मान रहे आजकल इसीलिए थोड़ा समझा करिये।
असहीं डांटते—समझाते—गुस्साते—मनाते रहिये। आपकी मेरे प्रति निश्चिंतता बनी रहे, मैं मज़बूत महसूस करती हूँ।

बाकी जताना—वताना तो मुझे आता ही नहीं। आपसे दू दिन दू बात न सुनो तो खाने का स्वाद ही नहीं आता इसीलिये कुछ न कुछ सुनाते रहिये बाकी फोन पहले से कम यूज कर रही हूँ आजकल आपको पता ही चल गया है तो थोड़ा खुश भी हो लीजिए।

एक दिन तो आपका है नहीं …..पप्पा जी हर दिन इज तोहार' । फिर भी कहे देते हैं 'हैप्पी फादर्स डे।' आज आपके साथ फोटो क्लिक करने के लिए आधे घंटे माहौल बनायी हूँ तब जाके संभव हुआ सो यू आर बेस्ट मैन बिहाइंड स्टेज। 
जय हो , प्रणाम💐💐💐💐

(गोरखपुर की रहने वाली आकृति विज्ञा ‘अर्पण’ की साहित्यिक अभिरुचि है। यह पत्र उन्होंने अपने पिता को लिखा है, जिसे UNBIASED INDIA के साथ साझा किया है।)

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