चीन का यह खोखला विरोध राष्ट्रवाद नहीं, उसकी नौटंकी है!

✍️ मृत्युंजय त्रिपाठी
मान लीजिए कि गांव को शहर का बहिष्कार करना है तो उसे क्या करना होगा?
क्या जरूरी नहीं कि वह सारी व्यवस्था सुनिश्चित करे जिसके लिए वह पलायन करता है?
मान लीजिए कि शहर को भी गांव पर आश्रित नहीं रहना है तो वह क्या करेगा?
क्या जरूरी नहीं कि वह सिर्फ कार्यालय नहीं, बल्कि सड़क, सीवर, फैक्ट्रियों में भी काम करने के लिए तैयार हो जाए?

अब मान लीजिए कि हमें चीन के सामान का बहिष्कार करना है तो क्या करना होगा?
क्या जरूरी नहीं कि हम जिन चीजों के लिए चीन पर आश्रित हैं, उसका उत्पादन करें ?
यह थोथा चना बाजे घना, झूठा राष्ट्रवाद कब तक चलेगा?

आजादी के लिए संघर्ष कर रहे वीरों ने अंग्रेजी कपड़ों की जब होली जलाई तो खादी धारण कर लिया। यह नहीं किया कि इस साल जिन कपड़ों की होली जलाई, वही पहनकर अगले साल दिवाली मनाई हो।

हम न तो पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को लेकर स्पष्ट हैं और न ही चीन के साथ।
एक तरफ देश के जवान उनसे लड़ते हैं, उनकी गोलियां खाते हैं, दूसरी तरफ देश के नागरिक उनके खिलाफ नारे लगाते हैं, चीनी सामान का दहन करते हैं और तीसरी तरफ देश की सरकारें व्यापारिक रिश्ते का निर्वहन करती हैं।

देश में जो चीनी माल है, वह खरीदा जा चुका है, उसमें देश के ही व्यापारियों के रुपये लगे हैं, या फिर हमारे घर तक आ चुका है तो हमारे रुपये लगे हैं। चीन को क्या फर्क पड़ता है कि हम उसके सामान खरीदकर उपयोग करते हैं या जलाते हैं? कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे बेचने से मतलब है।

यह राष्ट्रवाद नहीं, उसकी नौटंकी है कि आप हर साल चीनी सामान खरीदिए, हर साल गुस्सा आने पर जला दीजिए। पहले चीनी सामान से घर बनाइए, फिर गुस्सा आने पर अपना घर फुंकिए, आप ही तमाशा देखिए। यह तमाशा दुनिया देख रही है।

सच तो यह है कि देश की सरकार आजादी के बाद से अपने नागरिकों के लिए आज तक रोटी और मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य तक की व्यवस्था नहीं कर पाई है। चीन के एक जैविक प्रयोग ने भारत को सड़क पर ला दिया। लोगों के पास जीविकोपार्जन के लिए रोजगार नहीं हैं, कोरोना हुआ तो अस्पतालों में बेड नहीं है, मर गए तो कब्रिस्तानों में जगह नहीं है।

चीन ने छह दिन में अपने नागरिकों के लिए अस्पताल बना डाले और दुनिया ने देखा। दुनिया देख रही है कि भारत मरीजों की संख्या कम दिखाने के लिए जांच कम करने लगा है। लाशें छुपाई जाने लगी हैं। उच्चतम न्यायालय तक को दखल देना पड़ा है।

छह माह में देश की सरकारों ने इतना काम किया कि अब जाकर देश की राजधानी दिल्ली में बैंक्वेट हॉल में आइसोलेशन वार्ड खोले जा रहे हैं। चीन ने कोरोना पर प्रायः विजय पा ली है और हम इस स्थिति में आ गए हैं कि अपने ही परिजनों के मरने पर उसकी लाशें छोड़ भागने लगे हैं। और हमारी सरकार इस स्थिति में है कि लाशों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ने लगी है। हमारे यहां नए अस्पताल न बन पाए इसलिए नए कब्रिस्तान बनाए जाने लगे हैं।

चीन का राष्ट्रवाद आत्मनिर्भरता के साथ ही विश्व में अपने प्रभुत्व का है। हमारा राष्ट्रवाद बस हमारा गुस्सा शांत होने तक चीन के सामान के बहिष्कार और उसके खिलाफ वीडियो शेयर करने तक है।

चीनी सीमा पर हमारे 20 जवान मारे गए। खून खौल रहा है हमारा लेकिन देश की सीमा के अंदर हर कुछ घर से इलाज के अभाव में कुछ लाशें रोज निकल रही हैं और अपनी ही चुनी सरकार के खिलाफ दो शब्द बोलने के लिए खून पानी हो गया है हमारा।

देश में कोरोना के साढ़े 3 लाख मरीज हो चुके हैं और साढ़े 12 हजार लोगों की बिना सीमा पर गए, बिना किसी देश से लड़े या बन्दूक की गोली खाए ही मौत हो चुकी है। हम तेजी से संक्रमण और मौत के मामले में दुनिया में पहले नम्बर की तरफ बढ़ रहे हैं और मौत के मुहाने पर खड़े होकर हम ललकार रहे हैं कि चीन क्या कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मानो पूरा देश फेंकू हो गया है।

वाकई, चीन हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चीन हमारे साढ़े 12 हजार नागरिकों को वाकई नहीं मार सकता। हम तो पूरी ताकत से लड़ेंगे ही, विश्व की शक्तियां बीच में आ जाएंगी। चीन को बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी। यह काम बस हम कर सकते हैं क्योंकि यह हमारा आंतरिक मामला है। हम सरकारी बदइंतजामी, अव्यवस्था और संवेदनहीनता के चलते अपने साढ़े 12 हजार नागरिकों को खोने के बाद भी यह आंकड़ा बढ़ते हुए देखकर भी चैन से सो सकते हैं। ऐसा सिर्फ हम कर सकते हैं। इतनी गहरी नींद बस हमारी है।

… और जलाओ अपने ही रुपयों से खरीदे चीनी सामान! और चीन के विरोध में लिखो चीनी मोबाइल से। और चीन को औकात दिखाने वाले वीडियो बनाओ चीनी एप टिकटॉक से। और चीन के खिलाफ कंटेंट ढूंढो चीनी ब्रॉउजर यूसी पर…।

चीन इस समय पूरे विश्व में अपने बाजार फैला चुका है और खुद किसी भी देश के लिए बाजार नहीं बना। चीन की आत्मनिर्भरता यह है कि उसने पूरी दुनिया में मशहूर फेसबुक, यूट्यूब तक का विकल्प ढूंढ रखा है। और हमारी आत्मनिर्भरता यह है कि एक फुलझड़ी तक के लिए उस पर निर्भर हैं। हम संकल्प, संसाधनों और सामर्थ्य में चीन की बराबरी या उससे आगे निकलने की तो दूर, आसपास भी नहीं फटकते। हमारी सरकार बस हमें आत्मनिर्भर बनने का नारा दे सकती है और हम सब चीनी सामान खरीदकर उसे जला सकते हैं। बस इतना! बस आज के भारत का यही 'राष्ट्रवाद' है! यही 'हकीकत' है, यही 'औकात' है!
(कुशीनगर के रहने वाले मृत्युंजय त्रिपाठी युवा पत्रकार हैं और अपने ब्लॉग शेष में ज्वलंत मुद्दों पर लिखा करते हैं। अपना यह लेख उन्होंने UNBIASED INDIA के साथ साझा किया है।)

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