7 मई, 1861 को कोलकाता की धरती पर गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर जैसी महान हस्ती ने जन्म लिया और 7 अगस्त 1941 को उनका निधन हुआ। आज गुरुदेव की पुण्यतिथि है।
मात्र आठ साल की उम्र में उन्होंने पहली कविता लिखी। सोलह के हुए तो पहली लघुकथा प्रकाशित हुई। वे कवि, उपन्यासकार, लेखक, दार्शनिक होने के साथ साथ बेहतरीन पेंटर और संगीतकार भी थे। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर ने करीब 2230 गीतों की रचना की। उनके रबिन्द्र संगीत को बांग्ला साहित्य में सर्वोच्च स्थान हासिल है।
…तो आइए आज गुरुदेव की इस कविता के ज़रिए उन्हें याद करें, उन्हें नमन करें और दें कवितांजलि।
पिंजरे की चिड़िया थी..
पिंजरे की चिड़िया थी सोने के पिंजरे में
वन कि चिड़िया थी वन में
एक दिन हुआ दोनों का सामना
क्या था विधाता के मन में
वन की चिड़िया कहे सुन पिंजरे की चिड़िया रे
वन में उड़ें दोनों मिलकर
पिंजरे की चिड़िया कहे वन की चिड़िया रे
पिंजरे में रहना बड़ा सुखकर
वन की चिड़िया कहे ना…
मैं पिंजरे में क़ैद रहूँ क्योंकर
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
निकलूँ मैं कैसे पिंजरा तोड़कर
वन की चिड़िया गाए पिंजरे के बाहर बैठे
वन के मनोहर गीत
पिंजरे की चिड़िया गाए रटाए हुए जितने
दोहा और कविता के रीत
वन की चिड़िया कहे पिंजरे की चिड़िया से
गाओ तुम भी वनगीत
पिंजरे की चिड़िया कहे सुन वन की चिड़िया रे
कुछ दोहे तुम भी लो सीख
वन की चिड़िया कहे ना ….
तेरे सिखाए गीत मैं ना गाऊँ
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय!
मैं कैसे वनगीत गाऊँ
वन की चिड़िया कहे नभ का रंग है नीला
उड़ने में कहीं नहीं है बाधा
पिंजरे की चिड़िया कहे पिंजरा है सुरक्षित
रहना है सुखकर ज़्यादा
वन की चिड़िया कहे अपने को खोल दो
बादल के बीच, फिर देखो
पिंजरे की चिड़िया कहे अपने को बाँधकर
कोने में बैठो, फिर देखो।।
गुरुदेव को unbiased India की तरफ से शत् शत् नमन।