शायर अहमद फ़राज़ की पुण्यतिथि पर विशेष
इश्क़ और दर्द की धुन को अपने शब्दों में गुन कर हर दिल तक दस्तक देने वाले शायर अहमद फ़राज़ साहब। क्या लिखूं उनके बारे में जिनके शब्द हर बार नए लगते हैं, जिन्हें जितना भी पढ़ो, जितनी बार पढ़ो, हर बार नया सा लगता है।
… तो आइए आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर आपको उनके अल्फ़ाज़ों से सजी कुछ नज्मों से रु—ब—रु कराते हैं।
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे ख़फ़ा है तो जमाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्मो-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ।।
फराज़ साहब को ताउम्र जिस बात का सबसे ज्यादा मलाल रहा वो था देश निकाला। इस दर्द को शब्दों में उन्होंने कुछ यूं पिरोया-
वो पास नहीं अहसास तो है, इक याद तो है, इक आस तो है
दरिया-ए-जुदाई में देखो तिनके का सहारा कैसा हैमुल्कों मुल्कों घूमे हैं बहुत, जागे हैं बहुत, रोए हैं बहुत
अब तुमको बताएं यारो दुनिया का नज़ारा कैसा हैऐ देश से आने वाले मगर तुमने तो न इतना भी पूछा
वो कवि कि जिसे बनवास मिला वो दर्द का मारा कैसा है।
एक बार फराज़ साहब अमेरिका में मुशायरे में शिरकत गए। वहां उन्हें एक लड़की मिली जो उनसे ऑटोग्राफ लेने पहुंची थी। जब उन्होंने उससे उसका नाम पूछा तो उसने बताया ‘फ़राज़ा’। इस पर उन्होंने पूछा कि ये क्या नाम हुआ, तो फ़राज़ा ने कहा कि वो उसके माता पिता के पसंदीदा शायर हैं और उन्होंने तय किया था कि अपने बच्चे का नाम वे फराज़ साहब के नाम पर रखेंगे।
इस लम्हे पर फराज़ साहब ने कुछ यूं लिखा-
और फराज़ चाहिए कितनी मोहब्बतें तुझे ,
मांओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया।
फराज़ की कुछ शायरी हर जुबां पर है…
उस शख्स से बस इतना सा ताल्लुक है
वो परेशां हो तो हमें नींद नहीं आती।चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख्याल वैसे ही।
हमने तुझे देखा तो किसी और को नहीं देखा,
ऐ काश तेरे बाद गुज़रते कोई दिन और।
अब मायूस क्यों हो उसकी बेवफाई पर फ़राज़,
तुम ख़ुद ही तो कहते थे वो सबसे जुदा है।
सुना है बोले तो
बातों से फूल झड़ते हैं,
ये बात है तो चलो
बात करके देखते हैं।
अहमद फ़राज़ साहब हम सबके लिए जो सौगात छोड़कर गए हैं, उसने उन्हें हमेशा हमेशा के लिए हमारे दिलों में ज़िंदा रखा है, वैसे भी कहते हैं न कलमकार कभी नहीं मरते, वे अपने शब्दों के ज़रिए अपने चाहने वालों के दिलों में ज़िदा रहते हैं। नमन फ़राज़ साहब।