जिंदगी को जब मैं अपने रंग दिखाती हूँ,वो दीया बुझाती हैं, मैं दीया जलाती हूं! मैं उदास रातों में ढूंढ़ती हूं ख़ुद को ही,जब कहीं नही मिलती, थक के सो जाती हूँ! कुछ नजर नहीं आता मुझे अँधेरे में,कौन है जिसे अपनी उंगलियां थमाती हूँ! खुशबू आती है, जिसके पास आने से,जानती नहीं लेकिन रोज […]Read More
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अतिथि लेखकों की कलम से…
चिड़ियों की झुंड सीचहचहाती हैं बेटियां,पगडंडियों पर नीले—पीले आंचल उड़ाती हैं बेटियां!आंगन की तुलसी बन घर को महकाती हैं बेटियां,हंसी—ठिठोली कर सबका मन बहलाती हैं बेटियां!पायल की रूनझुन सी गुनगुनाती है बेटियां,पानी सी निर्मल—स्वच्छ नजर आती हैं बेटियां!क्यों देखते हैं दोयम निगाहों से इन्हें जमाने वाले?किसी भी मकान को घर बनाती हैं बेटियां।। (डॉटर्स डे […]Read More
2006 में जब महेंद्र सिंह धोनी ने भारतीय क्रिकेट टीम में अपना स्थान पक्का किया ही था तभी मैंने कहा था कि निश्चय ही यह खिलाड़ी आगे चलकर कप्तान बनेगा और भारतीय क्रिकेट को नई बुलंदियों पर ले जाएगा। बात शाम में हो रही थी इसलिए लोगों ने मेरी भविष्यवाणी को हँसी में उड़ा दिया। […]Read More
प्रेमचंद की जयंती पर विशेष कथा सम्राट प्रेमचंद का नाम कौन नहीं जानता? आज उनकी जयंती है। 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही में जन्मे प्रेमचंद का 8 अक्टूबर 1936 को निधन हो गया था। आज प्रेमचंद की जयंती पर गोरखपुर की अर्पण दूबे ने उन्हें चन्नर काका के रूप में संबोधित करते हुए […]Read More
बड़ी अजीब चाहत है मेरी,जहाँ नहीं होता कुछ भीमैं वहीँ सबकुछ पाना चाहती हूँ, वहीं पाना चाहती हूँमैं अपने सवालो के जवाबजहाँ लोग बर्षो से चुप हैं, चुप हैं किउन्हें बोलने नहीं दिया गयाचुप हैं किक्या होगा बोलकरचुप हैं किवे चुप्पीवादी हैं, मैं उन्ही आंखों मेंअपने को खोजती हूंजिनमें कोई भी आकृतिनहीं उभरती, मैं उन्हीं […]Read More
इश्क का नशा औरबारिश की एक बूंद,दोनों एक से है।प्यार में बावरा मन औरठंडी हवाओं में झूमता वृक्ष,दोनों एक से हैं।आंखों में बसे मोहब्बत के वो हसीन सपने औरबारिश के स्पर्श से चमकते पेड़ों के वो पत्ते,दोनों एक से हैं।आशिकी की वो धुन औरखुले आसमानों में मचलते परिंदों का वो झुंड,दोनों एक से हैं।इश्क की […]Read More
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अंदाज में चीन को सख्त चेतावनी दे डाली है। लद्दाख में भारत-चीन झड़प पर बात करते हुए उन्होंने मन की बात में साफ कहा कि भारत की भूमि पर आंख उठाकर देखने वालों को करारा जवाब मिला। भारत, मित्रता निभाना जानता है तो आंख में आंख डालकर देखना और उचित […]Read More
भारतीय सभ्यता—संस्कृति को देश—दुनिया तक पहुंचाने के लिए जिन आविष्कारों का इस्तेमाल किया जाना था, उनकी चकाचौंध में पड़कर हम स्वयं ही भारतीयता से कटते जा रहे हैं और आधुनिकता या कहें कि पश्चिमी सभ्यता—संस्कृति की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। आधुनिक जीवन में गैजेट क्या आ गया, हम अपनी धर्म—परंपरा से कटते चले गए। […]Read More
आकृति विज्ञा ‘अर्पण’ कहाँ से शुरू करें और कहां खत्म करें, ये सोचना भी मेरे बस का नहीं, लेकिन मनबढ़ तो हूँ। अब आप कर भी का सकते हैं, काहें कि ये वाली मनबढ़ई मुझे अपने हक़ की बात लगती है। पापा जी,आपके पापा अर्थात् हमरे पिताजी (दादा जी), मम्मी के पापा मने हमरे नाना […]Read More
सवनी ई सुंदर फुहार पियामन भयो तोहार पिया ना… अबकी आम के बगानओहि कजरी उठान बही सावन गीत के फुहार पियामन भयो तहार पिया ना… बड़की नीमिया के डारदेबो झूला एक डार संग पेनिये उड़ईबो जवार पियामन भयो तोहार पिया ना… लहके मेहंदी के डारिरंग देली चटकारि रंगे नाधब तोहरो दुलार पियामन भयो तोहार पिया […]Read More
मान लीजिए कि गांव को शहर का बहिष्कार करना है तो उसे क्या करना होगा? क्या जरूरी नहीं कि वह सारी व्यवस्था सुनिश्चित करे जिसके लिए वह पलायन करता है? मान लीजिए कि शहर को भी गांव पर आश्रित नहीं रहना है तो वह क्या करेगा? क्या जरूरी नहीं कि वह सिर्फ कार्यालय नहीं, बल्कि […]Read More
आरी कुल्हाड़ी झेलती हुई गुलमोहरी का अस्तित्व आज नष्ट ही होने वाला था कि उसने पीपल से कहा सुनो ..मैं भी तुमसे प्रेम करती हूं। मेरे रंगीन रूप ने तुम्हें समझने में हमेशा अवरोध उत्पन्न किया। मैं अपनी मुग्ध मनोरमता के कारण तुम्हें पहचान न सकी। आज इतनी आसानी से टूटने पर मुझे एहसास हो […]Read More
सारी दुनियां से ही बेखबर कर दिया,उसने मुझपे ये कैसा असर कर दिया। कर दिया बूंद को वो समंदरऔर मेरी चाहतों को मुख्तसर कर दिया। जगाई है मुझमें ऐसी मुहब्बत,मुहब्बत को दिल का डगर कर दिया। जाने क्या बात उसमें थी,दिल को मेरे वो अपना घर कर दिया। उसमें दिखने लगा नूर रब का,हर दुआ […]Read More
देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले एक मीडियाकर्मी का यह दर्द महसूस कीजिए जिसके परिवार में पत्नी, भाई और पापा इस समय कोरोना से जूझ रहे हैं। सिर्फ मीडियाकर्मी और उनकी मां ही निगेटिव पाए गए हैं। त्रासदी देखिए कि परिवार के सदस्यों में कोरोना के लक्षण मिलने के बाद पहले तो जांच नहीं […]Read More
मेरे भी कई ख्वाब थे,उन ख्वाबों मेंगगन को छू लेने जैसे अहसास थे पर,हकीकत की दुनिया बड़ी कठिन थीये भूख भी बड़ी जालिम निकलीवो रोटी जो सामने थी खड़ीकलम की ज़रूरत से थी बड़ी रोटी की खोज लेकर जहां जाती हैउम्र बहुत बड़ी हो जाती हैअक्सर रोटी की तलाश मेंप्रतिभाएं गुम हो जाती हैं ना […]Read More
खेतों की कब्रों पर लिखी गयी एकांत कहानियां, जहाँ पर आकाश का सूनापन मन के खाली गमलों को धीरे—धीरे अपने जब्त में ले रहा हो, ठीक उसी तरह जिस तरह मैं महसूस कर पा रही हूँ अपनी मासूमियत के कब्र पर बनी अनुभूति की कड़वी परत जो आहिस्ता—आहिस्ता दरकची बातों को वक्त के पालिश से […]Read More