बड़ी अजीब चाहत है मेरी,
जहाँ नहीं होता कुछ भी
मैं वहीँ सबकुछ पाना चाहती हूँ,
वहीं पाना चाहती हूँ
मैं अपने सवालो के जवाब
जहाँ लोग बर्षो से चुप हैं,
चुप हैं कि
उन्हें बोलने नहीं दिया गया
चुप हैं कि
क्या होगा बोलकर
चुप हैं कि
वे चुप्पीवादी हैं,
मैं उन्ही आंखों में
अपने को खोजती हूं
जिनमें कोई भी आकृति
नहीं उभरती,
मैं उन्हीं आवाजों में
चाहती हूं अपना नाम
जिनमें नहीं रखता मायने
नामों का होना ना होना,
मैं उन्हीं का साथ चाहती हूँ
जो भूल जाते हैं
मिलने के ठीक बाद,
मैं वहीं सब कुछ पाना चाहती हूँ!
(युवा कवयित्री अंजली काव्य—मंचों पर सक्रिय रहती हैं। उन्होंने अपनी यह रचना UNBIASED INDIA के साथ साझा की है।)
बहुत ही सुन्दर रचना
शब्दों के बांध से भावनाओं को छोड़ देती हैं और वो सैलाब सबको डूबा लेे जाता है ।