चिड़ियों की झुंड सी
चहचहाती हैं बेटियां,
पगडंडियों पर नीले—पीले आंचल
उड़ाती हैं बेटियां!
आंगन की तुलसी बन
घर को महकाती हैं बेटियां,
हंसी—ठिठोली कर
सबका मन बहलाती हैं बेटियां!
पायल की रूनझुन सी
गुनगुनाती है बेटियां,
पानी सी निर्मल—स्वच्छ
नजर आती हैं बेटियां!
क्यों देखते हैं
दोयम निगाहों से इन्हें जमाने वाले?
किसी भी मकान को घर
बनाती हैं बेटियां।।
(डॉटर्स डे पर शिक्षिका माधुरी सिंह ने यह कविता अनबायस्ड इंडिया के साथ साझा की है।)