खेलने दो बच्चों को मिट्टी से…

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष | World Environment Day Special

✍ डॉ. सुजाता कुमारी

हमारे खेतों का रंग हरा रहे
इस लिए खेलने दो बच्चों को मिट्टी से

नहीं बच रही है जगह पृथ्वी में
बढ़ रहा है लगातार लोगों के कारण घनत्व
शहर भर चुके हैं खचाखच
और बिकती जा रही हैं गाँवों की जमीन

वन काटे जा रहे हैं
नदियाँ संकोच के मारे सिमट रही हैं
बहें भी तो किस धारा बहें
उन्हें बाँधा जा रहा है बड़ी फैक्टरियों के नाम

मनुष्य आराम तलब हो गया है
सुख के नाम पर प्रकृति का दोहन जारी है
रंग बेगाना-सा हो गया है आसमान का
परिंदों की आवाजाही बंद है
दमघोंटू वायु का कहर है
मछलियाँ मचल रही हैं पानी के भीतर
समुद्र और अधिक खारा हो गया है
धरती तप रही है
और मौसम बदल गया है

एक अजीब-सी बेचैनी है सभी के मन में
चिड़चिड़ाहट और वाणी में तीखापन है

हताशा के वातावरण में बच्चे मायूस हो रहे हैं
उनकी कल्पनाएँ
उनकी प्रतिभा मुरझा रही है
जीवन लरज रहा है
उन्हें शुद्ध हवा-पानी की जरूरत महसूस हो रही है

बच्चे प्रकृति की पौध हैं
उन्हें सींचना होगा प्रकृति के संग-साथ
हवा-पानी और किरणों की मिठास
उनके दिलों में बोनी होगी
और प्यार की हल्की-सी थपकी देकर
रोप देना होगा सौंधी-सी महक के साथ।

(जैनामोड़, बोकारो की डॉ. सुजाता कुमारी प्रतिभासम्पन्न युवा कवयित्री हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रयोजनमूलक हिन्दी (पत्रकारिता) विषय से एम.ए. और पीएच-डी. की उपाधि लेने वाली सुजाता की रचनाएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।)

4 thoughts on “खेलने दो बच्चों को मिट्टी से…

  1. धन्यवाद unbiasedindia… धन्यवाद राजीव भैया।

  2. सहज भाव के संवेदनशील कतरे लिए हुए बेहद महत्त्वपूर्ण कविता। सुजाता बहन को ढेरों बधाई।

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