विश्व पर्यावरण दिवस विशेष | World Environment Day Special
हमारे खेतों का रंग हरा रहे
इस लिए खेलने दो बच्चों को मिट्टी से
नहीं बच रही है जगह पृथ्वी में
बढ़ रहा है लगातार लोगों के कारण घनत्व
शहर भर चुके हैं खचाखच
और बिकती जा रही हैं गाँवों की जमीन
वन काटे जा रहे हैं
नदियाँ संकोच के मारे सिमट रही हैं
बहें भी तो किस धारा बहें
उन्हें बाँधा जा रहा है बड़ी फैक्टरियों के नाम
मनुष्य आराम तलब हो गया है
सुख के नाम पर प्रकृति का दोहन जारी है
रंग बेगाना-सा हो गया है आसमान का
परिंदों की आवाजाही बंद है
दमघोंटू वायु का कहर है
मछलियाँ मचल रही हैं पानी के भीतर
समुद्र और अधिक खारा हो गया है
धरती तप रही है
और मौसम बदल गया है
एक अजीब-सी बेचैनी है सभी के मन में
चिड़चिड़ाहट और वाणी में तीखापन है
हताशा के वातावरण में बच्चे मायूस हो रहे हैं
उनकी कल्पनाएँ
उनकी प्रतिभा मुरझा रही है
जीवन लरज रहा है
उन्हें शुद्ध हवा-पानी की जरूरत महसूस हो रही है
बच्चे प्रकृति की पौध हैं
उन्हें सींचना होगा प्रकृति के संग-साथ
हवा-पानी और किरणों की मिठास
उनके दिलों में बोनी होगी
और प्यार की हल्की-सी थपकी देकर
रोप देना होगा सौंधी-सी महक के साथ।
(जैनामोड़, बोकारो की डॉ. सुजाता कुमारी प्रतिभासम्पन्न युवा कवयित्री हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रयोजनमूलक हिन्दी (पत्रकारिता) विषय से एम.ए. और पीएच-डी. की उपाधि लेने वाली सुजाता की रचनाएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।)
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धन्यवाद unbiasedindia… धन्यवाद राजीव भैया।
Thanks for your valuable comment.
सहज भाव के संवेदनशील कतरे लिए हुए बेहद महत्त्वपूर्ण कविता। सुजाता बहन को ढेरों बधाई।