पितृ पक्ष की शुरुआत 1 सितंबर से हो चुकी है। इसी के साथ बिहार स्थित गयाजी की चर्चा हर तरफ होने लगी है। लेकिन, नई पीढ़ी में अधिकतर इस बात से अनजान हैं कि आखिर पितृ पक्ष में गया का इतना महत्व क्यों है और साथ ही गया को इतने सम्मान के साथ गयाजी क्यों कहां जाता है।
आइए, बताते हैं…
समूचे भारत वर्ष में ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में गया के दो स्थान श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्द है। वे दो स्थान हैं बोध गया और विष्णुपद मन्दिर।
फल्गु नदी

पितृ पक्ष में गया में जिस जगह पर लोग दूर—दूर से आते हैं, वह स्थान एक नदी है, उसका नाम “फल्गु नदी” है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। तब से यह माना जाने लगा कि इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितर उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उऋण हो जाएगा।
गया से गया जी तक

इस स्थान का नाम ‘गया’ इसलिए रखा गया क्योंकि भगवान विष्णु ने यहीं की धरती पर असुर गयासुर का वध किया था। तब से इस स्थान का नाम भारत के प्रमुख तीर्थस्थानो में आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से “गया जी” बोला जाता है।
विष्णुपद मंदिर

विष्णुपद मंदिर वह स्थान है जहां के बारे में माना जाता है कि यहां स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित हैं, जिसकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि पितरों के तर्पण के पश्चात इस मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन करने से समस्त दुखों का नाश होता है और पूर्वज पुण्यलोक को प्राप्त करते हैं। इन पदचिह्नों का श्रृंगार रक्त चंदन से किया जाता है। इन पर गदा, चक्र, शंख आदि अंकित किए जाते हैं। यह परंपरा भी काफी पुरानी बताई जाती है जो कि मंदिर में अनेक वर्षों से की जा रही है।
कसौटी पत्थर से बना है मंदिर
विष्णुपद मंदिर सोने को कसने वाला पत्थर कसौटी से बना है, जिसे जिले के अतरी प्रखंड के पत्थरकट्टी से लाया गया था। इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है। सभा मंडप में 44 पिलर हैं। 54 वेदियों में से 19 वेदी विष्णपुद में ही हैं, जहां पर पितरों के मुक्ति के लिए पिंडदान होता है। यह ऐसा स्थान है जहां सालोंभर पिंडदान होता है। यहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के स्पर्श से ही मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं।