गैंगस्टर विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद उसके मुठभेड़ के तरीके पर उठे सवाल के बीच कानपुर में उसके अंतिम संस्कार के समय पत्नी रिचा दुबे बिफर पड़ीं। मीडियाकर्मियों के सवाल पर आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने लगीं और कहा कि भाग जाओ, जिसने जैसा सलूक किया है, उसको वैसा ही सबक सिखाऊंगी। अगर जरूरत पड़ी तो बंदूक भी उठाऊंगी।
कानपुर में विकास दुबे के शव के पोस्टमॉर्टम के बाद भैरव घाट पर उसका अंतिम संस्कार किया गया। भैरव घाट पर विकास की पत्नी रिचा दुबे, छोटा बेटा और बहनोई दिनेश तिवारी समेत कुछ ही परिजन मौजूद रहे। इस दौरान भी मीडियाकर्मी वहां पहुंच गए और सवाल करने लगे। इस पर रिचा भड़क गईं। रिचा ने मीडियाकर्मियों को गालियां तक दीं। कहा कि भाग जाओ, जिसने जैसा सलूक किया है, उसको वैसा ही सबक सिखाऊंगी। अगर जरूरत पड़ी तो बंदूक भी उठाऊंगी।
बता दें कि कानपुर शूटआउट के मुख्य आरोपी विकास दुबे का शुक्रवार सुबह कानपुर से 17 किमी पहले नाटकीय ढंग से एनकाउंटर कर दिया गया था। विकास के सीने में तीन, जबकि एक गोली कमर में लगी थी। पोस्टमॉर्टम के बाद उसका शव उसके बहनोई दिनेश तिवारी को सौंपा गया था। अंतिम संस्कार के समय भी पुलिस फोर्स मौजूद रही।
आखिर क्यों भड़कीं रिचा?
एक तरफ रिचा द्वारा मीडियाकर्मियों को गाली देने की निंदा हो रही है तो दूसरी तरफ मीडियाकर्मियों के भी आचरण पर सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या अंतिम संस्कार के समय भी मीडियाकर्मियों का माइक—कैमरे के साथ पहुंचना और सवाल करना जायज था? पहले ही कई दिनों से लगातार विकास दुबे के परिजनों से पुलिस और मीडियाकर्मी तरह—तरह के सवाल कर रहे हैं। ऐसे में पति के अंतिम संस्कार के समय उसकी बीवी से उल—जलूल सवाल करना मीडिया का कौन सा संस्कार है?
तंत्र के साथ मीडिया से भी भरोसा खोया
माना जा रहा है कि विकास दुबे के परिजनों को भरोसा था कि मीडिया के होते हुए उसका एनकाउंटर नहीं किया जा सकता। इसीलिए विकास दुबे ने खुद को पुलिस के हवाले करते समय भी चिल्लाया था कि मैं विकास दुबे हूं, कानपुर वाला। यह बताने का उसका मकसद ही था कि सभी जान जाएं कि वह अब पुलिस हिरासत में है ताकि उसके साथ कोई अनहोनी न हो। विकास को और उसके परिजनों को भी भरोसा था कि सभी को पता चल चुका है कि वह पुलिस हिरासत में है तो अब पुलिस उसका एनकाउंटर न करेगी। लेकिन, बाद में विकास का एनकाउंटर कर दिया गया।
सवाल किससे करने थे, कर किससे रहे थे…
अखबारों और चैनलों पर नाटकीय ढंग से किए गए एनकाउंटर पर सवाल तो उठाए गए लेकिन सीधे—सीधे इसे कानूनी रूप से गलत बताने से हर कोई बचता रहा। प्राय: हर न्यूज चैनल ने दिखाया कि एनकाउंटर से कुछ दूर पहले मीडियाकर्मियों को रोक दिया गया, जिस गाड़ी में विकास दुबे था वह दूसरी गाड़ी थी और जो पलटी वह दूसरी गाड़ी थी, गाड़ी ऐसे पलटी थी मानो पलट दी गई हो, बाद में क्रेन से गाड़ी को खींचकर निशान बनाए गए, विकास दुबे के पैर सही नहीं थे, लिहाजा वह भाग नहीं सकता था, विकास ने खुद समर्पण किया था तो वह पिस्टल छीनकर क्यों भागेगा? लेकिन, इसे एक फर्जी मुठभेड़ बताने से सभी बचते रहे। जब मीडिया को पुलिस हिरासत में एक आरोपी, जो कि अभी दोषी सिद्ध नहीं हुआ था, की मौत के लिए सत्ता और पुलिस से सवाल करना चाहिए था, तब श्मशान घाट पर उसी मृतक की बीवी को परेशान करना कितना जायज था? रिचा का भड़कना इसी बात पर था कि मीडियाकर्मियों के होते हुए, उनके सबकुछ जानते हुए भी उनका पति पुलिस हिरासत में मार दिया गया लेकिन वे सत्ता से सवाल करने के बजाय अभी भी उन्हीं के पीछे पड़े हुए हैं।