जम्हाई… पांच सेकेंड की यह क्रिया गर्भ में पल रहे शिशु से लेकर ज्यादातर जीव तक करते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि जब हम किसी को उबासी या जम्हाई लेते हुए देखते हैं तो हमें भी उबासी आने लगती है। लेकिन ऐसा क्यों होता है? आइए, जम्हाई या उबासी से जुड़े हर सवाल का जवाब ढूंढते हैं।
उबासी ने वैज्ञानिकों को पिछले 2500 सालों से उलझाए रखा। शुरुआत में वैज्ञानिक हिप्पोक्रेट्स ने कहा कि उबासी मनुष्य के अंदर से हानिकारक वायु को बाहर निकालती है खास तौर पर जब हमें बुखार होता है। इसके बाद कई सिद्धांत प्रस्तुत किए गए। फिज़ियोलॉजिक थीयरीज़ के मुताबिक जम्हाई हमारे खून में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाती है तो वहीं इवोल्यूशनरी थियरीज़ के मुताबिक जम्हाई लेना संचार का प्रारंभिक रुप था।
इन सबसे परे एक आम धारणा ये है कि उबासी बोर होने का नहीं बल्कि तनाव से मुकाबला करने का ज़रिया है। उदाहरण के लिए जैसे कंप्यूटर के पंखे कंप्यूटर के गर्म होने पर उसे ठंडा करते हैं, ठीक उसी तरह जब कोई इंसान थका हुआ महसूस करता है तो उबासी की ठंडी हवा न्यूरोलॉजिकल फंक्शन यानि कि तंत्रिका तंत्र के क्रियाकलाप को अनुकूल करती है।
कई अध्ययनों में ये भी पाया गया है कि पैराट्रूपर्स प्लेन से कूदने से पहले उबासी लेते हैं जबकि ओलंपिक एथलीट दौड़ लगाने से पहले उबासी लेते हैं। इसी तरह स्तनधारियों से लेकर मछलियों तक शिकार से पहले ये सभी उबासी लेते हैं।
The University at Albany – State University of New York में काम करने वाली Dr. Gordon Gallup और उनके साथियों ने कई वर्षों तक उबासी पर शोध किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उबासी सोने का लक्षण नहीं है बल्कि कम्यूनिकेशन यानि कि संचार का एक माध्यम है। शोध में कहा गया है कि उबासी की ये क्रिया मानव उत्पत्ति की आरंभिक काल में उत्पन्न हुई होगी और इसका उपयोग एक—दूसरे को शिकारियों से आगाह करने के लिए किया जाता रहा होगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिघम द्वारा प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, जैसे ही कोई हमारे आसपास उबासी लेता है हमारे मस्तिष्क का प्राइमरी मोटर कॉर्टेक्स अचानक सक्रिय हो जाता है और हमें भी उबासी आ जाती है। प्राइमरी मोटर कॉर्टेक्स हमारे दिमाग का वो भाग होता है जो हमारे मोटर फंक्शन्स यानि कि हिलने—डूलने की प्रक्रिया को संचालित करता है। इस अध्ययन ‘A neural basis for contagious yawning’ को Current Biology जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
उबासी के बारे में अलग-अलग शोधों और अध्ययनों का फिलहाल कोई ठोस निष्कर्ष तो नहीं निकला है लेकिन ऐसा माना जाता है कि हमारे शरीर की सभी अनैच्छिक क्रियाओं का कोई ना कोई उद्देश्य ज़रुर होता है। इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि उबासी भी हमारे शरीर के किसी ना किसी उद्देश्य की पूर्ति ज़रुर करती होगी।
मन में उपजे हर सवाल का जवाब पाने के लिए पढ़ते रहिए UNBIASED INDIA.