पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह शुक्र पर जीवन की संभावना कम समझी जाती है। कारण है यहां का ज्यादा तापमान और कार्बन डाई ऑक्साइड की अधिक मात्रा लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों को शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन (PH3) गैस मिली है जिसने यहां जीवन की संभावनाओं को बढ़ा दिया है। दरअसल, फॉस्फीन गैस शुक्र की सतह से 50 किलोमीटर ऊपर ऐसे स्थान पर मिली है जहां का तापमान और दबाव ठीक उतना ही है जितना पृथ्वी के समुद्री तल पर होता है। पृथ्वी पर फॉस्फीन का संबंध जीवन से होता है जिसका निर्माण माइक्रोब्स या फिर मानव औद्योगिक गतिविधियों में होता है। ऐसे में शुक्र ग्रह की सतह से 50 किलोमीटर ऊपर फॉस्फीन गैस कैसे स्थित है? इसी बात का पता लगाया है ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनके सहयोगियों ने।
क्या होती है फॉस्फीन?
फॉस्फीन, फॉस्फोरस का एक यौगिक है। ये एक रंगहीन और विस्फोटक गैस है जिसमें लहसुन या फिर सड़ी हुई मछली की गंध आती है। इस गैस का उत्सर्जन माइक्रो बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में करते हैं।
कैसे मिली शुक्र पर फॉस्फिन?
प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनके साथियों ने हवाई के मौना केआ ऑब्जरवेटरी में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप और चिली में स्थित अटाकामा लार्ज मिलीमीटर ऐरी टेलीस्कोप की मदद से शुक्र ग्रह पर नज़र रखी। इससे उन्हें फॉस्फीन के स्पेक्ट्रल सिग्नेचर का पता लगा जिसके बाद वैज्ञानिकों ने संभावना जताई कि शुक्र ग्रह के बादलों में यह गैस बहुत बड़ी मात्रा में है। वैज्ञानिकों ने इस पर खोज पर विस्तार से अध्ययन किया है और बताया कि ये अणु किसी प्राकृतिक, नॉन बायोलॉजिकल ज़रिए से बना हो सकता है जो कि वहां जीवन की संभावनाओं को बढ़ाता है। उनका ये अध्ययन नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
क्यों असंभव लगता है शुक्र पर जीवन?
सबसे चमकदार ग्रहों में से एक शुक्र पर वायुमंडल की मोटी परत है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता है। यहां के वातावरण में 96% कार्बन डाइऑक्साइड है।. इस ग्रह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के मुक़ाबले 90 गुणा ज़्यादा है। शुक्र के सतह का तापमान किसी पिज़्ज़ा के ओवन की तरह 400 डिग्री सेल्सियस से भी ज़्यादा है यानि अगर आपने शुक्र ग्रह पर पैर रखा तो कुछ ही सेकेंड में आप उबलने लगेंगे। इसलिए मौजूदा अध्ययन के मुताबिक अगर शुक्र पर जीवन होता भी है तो वो 50 किलोमीटर ऊपर मिलने की ही उम्मीद की जा सकती है।
क्या है निष्कर्ष?
वैज्ञानिकों का कहना है कि फास्फीन की उपस्थिति से पता चलता है कि शुक्र की सतह पर अज्ञात भूगर्भीय या रासायनिक प्रक्रियाएं घटित हो रही हैं। इसलिए ग्रह के वायुमंडल में गैस की उत्पत्ति का बेहतर पता लगाने के लिए और शोध की जरुरत है। उन्होंने अपने शोधपत्र में लिखा है कि शुक्र पर फॉस्फीन की उत्पत्ति अज्ञात फोटोकैमिस्ट्री या जियोकेमिस्ट्री से हो सकती है या पृथ्वी पर फॉस्फीन के जैविक उत्पादन के अनुरूप भी यह पैदा हो सकता है। फिलहाल नासा ऐसी दो योजनाओं पर काम कर रहा है जिससे शुक्र ग्रह के वायुमंडल को भविष्य में और भी बारीकी से जाना जा सकेगा।