ज़िदगी जीते तो सभी हैं पर जिन्होंने ज़िंदगी को कागज पर उतार दिया, वो हैं गोरखपुर की धरती पर 28 अगस्त 1896 को जन्मे रघुपति सहाय, जिन्हें आगे चलकर नाम मिला फिराक गोरखपुरी साहब। ऊर्दू ज़ुबान के वो एक ऐसे शायर थे जिनकी कलम से निकले एक एक अल्फ़ाज़ पर दुनिया कहती वाह, वाह, वाह। फिराक गोरखपुरी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार के साथ साथ 1968 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
तो आइए फिराक गोरखपुरी साहब की जयंती के मौके पर दिल को छूने वाली उनकी कुछ रचनाएं आपकी नज़र करते हैं।
पेश है फिराक की शायरी
‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी! हम दूर से पहचान लेते हैं’।
‘मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं।’
‘आए थे हंसते-खेलते
मयखाने में फिराक
जब पी चुके शराब
तो संजीदा हो गए’।
‘अब तो उनकी याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाईयां।’
‘एक मुद्दत से तेरी याद भी आई नहीं
और हम भूल गए हों तुझे
ऐसा भी नहीं।’
‘कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तूने तो धोके पर दिया है धोका।’
‘ये माना कि ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी।’
‘ज़िंदगी क्या है मुझसे पूछते हो दोस्तों
एक पैमां है जो पूरा होके भी न पूरा हो।’
और चलते चलते वो लाइनें आपकी नज़र जो उन्होंने खुद के लिए लिखी थीं-
“आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम असरों
जब भी उनको ध्यान आएगा, तुमने फ़िराक़ को देखा है”
… और हम भी ख़ुद पर रश्क करेंगे फिराक साहब कि हमने आपको पढ़ा है। कलम से ज़िंदगी को शब्दों में गढ़ने वाले कवि फिराक गोरखपुरी को UNBIASED INDIA की तरफ से दिल से नमन।