(स्वतंत्रता दिवस पर ख़ास)

असद भोपाली का गीत
हो प्यार बांटते चलो प्यार बांटते चलो
हे प्यार बांटते चलो प्यार बांटते चलो
क्या हिन्दू क्या मुसलमान हम सब हैं भाई भाई
प्यार बांटते चलो प्यार बांटते चलो
हे प्यार बांटते चलप्यार बांटते चलो
“मैं जला हुआ राख नहीं, अमर दीप हूँ
जो मिट गया वतन पर, मैं वो शहीद हूँ”
आज़ादी की पछत्तरवीं वर्षगांठ पर आप को उन क्रांतिकारियों की याद दिलाना चाहते हैं जिनकी जोड़ियां बहुत मशहूर रही है,उसमें एक जोड़ी रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां की थी ।इसका कारण सिर्फ ये नहीं कि काकोरी कांड में यही लोग आरोपी थे,बल्कि इसका मुख्य कारण था कि ये एक-दूसरे को जान से भी ज्यादा चाहते थे। जान दे दी, पर एक-दूसरे को धोखा नहीं दिया। रामप्रसाद बिस्मिल के नाम के आगे पंडित जुड़ा था,रोशन सिंह के नाम में ठाकुर जुड़ा था, तो वहीं अशफाक मुस्लिम थे, वो भी पांच वक्त के नमाजी, पर इस बात का कोई फर्क इन पर नहीं पड़ता था,क्योंकि इनका मकसद एक ही था,आजाद मुल्क।वो भी मजहब या किसी और आधार पर हिस्सों में बंटा हुआ नहीं, पूरा का पूरा। इनकी दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं।याद रखें कि अशफाक मात्र 27 साल की उम्र में शहीद हो गए।
अशफाक उल्ला खां शायर थे,वारसी’ और ‘हसरत’ के नाम से शायरी लिखते थे।अशफाक उल्ला खां की एक नज्म देखिए जो तब की है, जब गांधी के रास्ते में उनका पूरा भरोसा था।क्रांतिकारी अशफाक की इस नज्म से अहिंसा का फलसफा झलक रहा है –
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे
हटने को नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे
बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का
चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे
परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की
है जान हथेली पर, एक दम में गवां देंगे
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे
दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं
खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे
मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।
जिंदगी भर दोस्ती निभाने वाले अशफाक,रोशन और बिस्मिल तीनों को दो अलग-अलग जगहों पर फांसी दी गई।अशफाक को फैजाबाद में,बिस्मिल और रोशन को गोरखपुर में,पर तीनों साथ ही इस जहान से गए और अपनी दोस्ती भी लेते गए,पर पैगाम देते गए।
लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आयेगा।
मेरे लहू का हर एक कतरा इकंलाब लाऐगा।।
मैं रहूँ या ना रहूँ पर ये वादा है तुमसे मेरा कि।
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आयेगा।।
(प्रेम कुमार सिंह सेवानिवृत्त अभियंता हैं और एक स्वतंत्र ब्लॉगर। वह विभिन्न मुद्दों पर अपने ब्लॉग Thoughts Unfiltered में अपनी बेबाक राय रखते हैं। पीके सिंह ने यह लेख UNBIASED INDIA के साथ साझा किया है।)