18 जुलाई 1861 को बिहार के भागलपुर में बृजकिशोर बासु के घर एक बिटिया का जन्म हुआ। नाम रखा गया कादंबिनी। तब किसी ने सोचा भी न था कि ये बच्ची आगे चलकर कुछ ऐसा कर दिखाएगी कि इतिहास के पन्नों में उसका नाम दर्ज होगा। 1882 में कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे भारत की दो में से पहली महिला ग्रेजुएट थीं।
1886 में कोलकाता विश्वविद्यालय से चिकित्साशास्त्र की डिग्री लेने वाली वे पहली महिला थीं। इसके बाद उन्होंने ग्लासगो और ऐडिनबर्ग विश्वविद्यालयों से चिकित्सा शास्त्र की उच्च डिग्रीयां हासिल कीं। ये वो दौर था जब भारत में महिलाओं को शिक्षा के लिए ख़ासा संघर्ष करना पड़ता था, लेकिन कांदबिनी गांगुली ने उस दौर में न सिर्फ शिक्षा हासिल की बल्कि वे भारत की पहली महिला डॉक्टर भी बनीं। वो पहली साउथ एशियन महिला थीं, जिन्होंने यूरोपियन मेडीसिन में प्रशिक्षण लिया था। वे आठ बच्चों की मां थीं, जिनके पालन पोषण और पति के सहयोग के साथ उन्होंने कामयाबी की वो उड़ान भरी जो न सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई बल्कि हर महिला के लिए मिसाल बन गई।