ज्योति बसु का नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उनके नाम के साथ जुड़ा है 23 साल 137 दिन तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री रहने का गौरव। वो दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्होंने इतने लंबे समय तक सीएम पद संभाला। उनके व्यक्तित्व का असर ऐसा कि विरोधी भी उनकी तारीफ करते थे। तीन बार उन्हें प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला या कह लीजिए न्योता मिला लेकिन अलग अलग कारणों से वे नहीं बने। उस दौर में जब विधायक का वेतन 250 रुपए हुआ करता था वो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा पार्टी फंड में दे दिया करते थे । 8 जुलाई 1914 को जन्मे ज्योति बसु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कुछ तो था उनमें जो उन्हें औरों से अलग करता था। 17 जनवरी 2010 को उनका निधन हो गया।
आज उनकी जयंती पर बतौर मुख्यमंत्री उनकी कुछ ख़ास उपलब्धियों पर नज़र डालें तो-
- नक्सलवादी आंदोलन से बंगाल में जन्मी अस्थिरता को उन्होंने राजनीतिक स्थिरता में बदल दिया।
- भूमि सुधार की दिशा में भी उनकी सरकार ने सराहनीय कार्य किया।
- ज्योति बसु की सरकार ने ज़मींदारों और सरकारी कब्जे वाली ज़मीनों का मालिकाना हक़ करीब दस लाख भूमिहीन किसानों को दे दिया।
- ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी या हालात बदलने में काफी हद तक उन्होंने सफलता हासिल की।
बात अगर नाकामी की करें तो –
- उद्योगों को नए सिरे से खड़ा नहीं कर पाए।
- विदेशी निवेश लाने में असमर्थ रहे।
- बार बार हड़ताल करने वाली ट्रेड यूनियंस पर लगाम नहीं लगा पाए।
इन नाकामियों के बावजूद ज्योति बसु जनता के बेहद करीब रहे। जीते जी पूरे जी जान से जनता की सेवा में लगे रहने वाले ज्योति बसु ने अपनी मौत को भी जनता को दे दिया। अपनी देह दान करते हुए अपने शपथ पत्र में उन्होंने लिखा- ‘‘एक कम्युनिस्ट होने के नाते मैंने अपनी अंतिम सांस तक मानवता की सेवा करने की शपथ ली है। मुझे खुशी है कि अब मैं अपनी मौत के बाद भी यह सेवा जारी रखूंगा।‘‘
आज जब ज्योति बसु के बारे में लिखने बैठी तो उनके नाम से जुड़ा एक किस्सा याद आया। उनका असली नाम ज्योतिरेंद्र नाथ बसु था। पर जब उनके पिता उनका एडमिशन कराने कोलकाता के लोरेटो स्कूल गए तो उनसे कहा गया कि आपके बेटे का नाम काफी बड़ा है। उसके बाद उनके पिता ने उनका नाम ज्योति बसु कर दिया।
ज्योति बसु 1940 में जब बैरिस्टरी की पढ़ाई करके भारत लौटे तब तक उन पर देशभक्ति और देशसेवा का रंग पूरी तरह चढ़ चुका था। उन्होंने अपने पिता से साफ साफ कहा कि वे बैरिस्टर नहीं बनेंगे बल्कि कम्यूनिस्ट पार्टी में काम करेंगे। उनके पिता ने उन्हें समझाया कि वे दोनों काम एक साथ करें लेकिन ज्योति बसु नहीं माने जिससे उनके पिता काफी आहत हुए। लेकिन जब 1946 में वे एमएलए बने तो उनके पिता काफी खुश हुए।
पी जी वोडहाउस और अगाथा क्रिस्टी की किताबें ज्योति बसु काफी मन से पढ़ते थे। इतना ही नहीं सत्तर साल की उम्र तक वो अपनी चाय खुद बनाते थे और जूतों में खुद ही पॉलिश किया करते थे। चाय से याद आया कि ज्योति बसु ने 21 साल की उम्र तक चाय नहीं पी थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके पिता ने उन्हें चाय पीने से मना कर रखा था।
अगर कहें कि सदियों में सियासी आसमान पर ऐसा सितारा चमकता है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज उनकी जयंती पर UNBIASED INDIA की तरफ से विनम्र श्रद्धांजलि!