कल 8 जुलाई 2020 को एक ऐसे सितारे ने दुनिया को अलविदा कह दिया, जिसने हर किसी को हंसाया। हंसना सिखाया। उसी सितारे के आसमां से टूट जाने की खबर आई तो धरती पर वीरानगी छा गई। हम सभी के चहेते हास्य कलाकार सय्यद इश्तियाक अहमद जाफरी जिन्हें दुनिया जगदीप कहकर बुलाती थी, अब हमारे बीच नहीं रहे।
सूरमा भोपाली के किरदार से मशहूर होने वाले जगदीप ने 81 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। वह जाते जाते समझा गए कि हालात कैसे भी हों, हंसते रहना है बस हंसते जाना है। जगदीप जाते—जाते आखिरी संदेश भी दे गए—
“ मैं मुसकुराहट हूं, जगदीप हूं। आओ हंसते हंसते और जाओ हंसते हंसते। हमारा नाम भी सूरमा भोपाली ऐसे ही नहीं है, अब आप समझ लो।” (यह संदेश उनके बेटे जावेद जाफरी ने उनके जन्मदिन यानी 29 मार्च 2018 को रिकॉर्ड किया था।)
जगदीप ने करीब चार सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया और लोगों को अपने अंदाज़ से जमकर हंसाया। फिर वो शोले का सूरमा भोपाली का किरदार हो या फिर पुराना मंदिर में मच्छर का रोल या फिर अंदाज़ अपना-अपना में सलमान खान के पिता की भूमिका। वो जब भी परदे पर आए, उन्होंने इतना हंसाया कि आंखों में आंसू आ गए और आज उनका यूं जाना भी आंखों को नम कर गया।
सूरमा भोपाली का किरदार
सूरमा भोपाली का किरदार जगदीप साहब को इतना पसंद था कि उन्होंने इस नाम से फिल्म भी बनाई। इसमें लीड रोल में वे खुद नज़र आए। 1951 में बीआर चोपड़ा की फिल्म अफसाना से बतौर बाल कलाकार उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा। साल 2012 में आई फिल्म ‘गली गली चोर है’ उनके करियर की आखिरी फिल्म है। वैसे तो जगदीप साहब अपने हर किरदार में नई जान डाल देते थे, लेकिन ‘हम पंछी एक डाल के’ में उन्होंने अपने किरदार में इस तरह रंग भरे कि ख़ुद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने न सिर्फ उनकी तारीफ की बल्कि उनके लिए अपना पर्सनल स्टाफ भी रख दिया था।
फिल्म अफसाना से शुरू यादगार सफर
29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया में जन्मे जगदीप का बचपन बेहद संघर्ष भरा रहा। पिता के निधन के बाद उनकी मां उन्हें मुंबई लेकर आईं और घर का खर्च चलाने के लिए अनाथाश्रम में खाना बनाने का काम करने लगीं। ये बात जगदीप को पसंद नहीं आई और उन्होंने सामान बेचने का काम शुरु किया। ज़िंदगी की गाड़ी इसी तरह आगे बढ़ती रही और फिर 1951 में फिल्म अफसाना के साथ फिल्मी दुनिया में उनका एक यादगार सफर शुरु हुआ जो लगातार चलता रहा। अब जबकि वे हमारे बीच नहीं हैं तब भी उनके किरदार हमेशा हमारे बीच रहेंगे जो याद दिलाएंगे उनकी और कभी गुदगुदाएंगे तो कभी आंखें नम कर जाएंगे।
उनका कुछ डायलॉग जो हर ज़ेहन में हमेशा ज़िंदा रहेंगे-
‘मियां जबरन झूमते रेते हो टुटर पर और पच्चीस झुठ हमसे बुलाते हो !!
अब तो मियां निकल लो यहां से’।
– फिल्म शोले
‘पैसे… ऐसे कैसे पैसे मांग रहे हो।’
– फिल्म शोले
‘तुम लोग इतना सा था तालाब में नंगा नहाते थे, हम पकड़कर बाहर निकालते थे, अब तो तुम पूरा जेम्स बॉंड हो गए, सांड के सांड हो गए।’
– फिल्म क्रोध
‘हम लड़ता नहीं, लड़वाता है,… हम करता नहीं, करवाता है,… हम मारता नहीं मरवाता है।’
– फिल्म विधाता
टीम Unbiased India की तरफ से इस महान शख्सियत को भावभीनी श्रद्धांजलि।