वो आंखों से बातें करती थीं, उन्होंने उस दौर में फिल्मी दुनिया में कदम रखा जब लड़कियों का घर से बाहर कदम निकालना भी बुरा माना जाता था, वो हिंदी सिनेमा की पहली ब्लॉकबस्टर कही जाने वाली फिल्म कंगन की हीरोइन थीं। वो ‘लीला चिटनिस’ थीं। वे ऐसी पहली भारतीय अभिनेत्री थीं जिन्होंने 1941 में लक्स साबुन के विज्ञापन में काम किया था। 9 सितंबर 1909 को धारवाड़ में जन्मीं लीला चिटनिस का 14 जुलाई 2003 को डैनबरी में निधन हो गया।
लीला चिटनिस की काफी कम उम्र शादी हो गई थी, वे चार बच्चों की मां बन गईं पर पति से लगातार अनबन की वजह से दोनों ने अलग होने का फैसला किया। बाद में उन्होंने बच्चों की परवरिश के लिए बतौर टीचर काम करना शुरु किया और इसके साथ ही वो नाटकों में काम करने लगीं। इसके बाद उन्हें ‘सागर मूवीटोन’ में एक्स्ट्रा के रुप में काम करने का मौका मिला। इसके बाद वे ‘जेंटलमेन डाकू’ में उन्होंने एक ऐसा किरदार निभाया जिसमें वे पुरुष के पोषाक में नज़र आईं। 1936 में आई मास्टर विनायक की फिल्म छाया उनके करियर को एक नया मुकाम देने में कारगर साबित हुई। उन्हें महाराष्ट्र की पहली ग्रेजुएट लेडी नाम दिया गया।
इसके बाद बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘कंगन’ में वे लीड रोल में अशोक कुमार के साथ नज़र आईं। ये फिल्म अपने समय की ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्में दीं। फिल्म शहीद में वे पहली बार मां के किरदार में नज़र आईं। इसके बाद उन्होंन कई फिल्मों में मां का किरदार कुछ यूं निभाया कि वे इस रोल के लिए जानी जाने लगीं। 1987 में आई फिल्म ‘दिल तुझको दिया’ उनके करियर की आखिरी फिल्म थी। इसके बाद वे अपने बड़े बेटे के साथ अमेरिका रहने लगीं और फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से दूरी बना लीं।
लीला चिटनिस एक ऐसा नाम, एक ऐसी पहचान हैं जो तमाम महिलाओं और लड़कियों के लिए मिसाल बन गईं। उन्होंने दुनिया के सामने उदाहरण रखा कि हालात कितने भी हमारे खिलाफ हों, पर हम ठान लें तो कुछ भी हासिल कर सकते हैं। UNBIASED INDIA के पाठकों और टीम की तरफ से उन्हें शत् शत् नमन।