वो 24 जुलाई साल 2000 का दिन था। आम दिनों की ही तरह, पर एस विजयलक्ष्मी ने कुछ ऐसा किया कि ये तारीख इतिहास के पन्नों में एस विजयलक्ष्मी के नाम के साथ दर्ज हो गई, और भारत को मिली देश की पहली महिला ग्रैंडमास्टर। 25 मार्च 1979 को जन्मीं विजयलक्ष्मी ने बेहद कम उम्र में ही अपने पिता से शतरंज सीखना और खेलना शुरु कर दिया था, तब शायद ही किसी ने सोचा हो कि आगे चलकर वो शतरंज की बिसात पर चालों की ऐसी बरसात करेंगी इतना बड़ा खिताब अपने नाम कर लेंगी।
साल 1986 में उन्होंने ताल शतरंज ओपन टूर्नामेंट के साथ खेल जगत में कदम रखा और फिर हर टूर्नामेंट के साथ कामयाबी की नई इबारत लिखती गईं। सिर्फ राष्ट्रीय खेलों में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय खेल जगत में भी एस विजयलक्ष्मी ने अपना नाम किया। शतरंज ओलंपियाड में किसी भी दूसरे भारतीय से ज्यादा पदक जीतने का रिकॉर्ड भी एस विजयलक्ष्मी यानी सुब्बारमन विजयलक्ष्मी के नाम दर्ज है। उन्होंने शतरंज अपने पिता से सीखा। वैसे तो उनके नाम कई खिताब हैं लेकिन साल 2001 में भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया।