किसने लिखा नहीं पता, पर जिसने भी लिखा है क्या खूब लिखा है-
मंज़िल पर सफलता का निशान चाहिए
होठों पर खिलती हुई मुस्कान चाहिए
बहलने वाले नहीं हम छोटे से टुकड़े से
हमें तो पूरा का पूरा आसमान चाहिए।
वाकई अपने हिस्से के आसमान पर सभी का हक़ है। लेकिन इसे पाने के लिए ज़रूरी है ज़िद और जुनून। आज मैं कुछ ऐसे ही ज़िद्दी लोगों के बारे में आपको बताऊंगी, जिनके जुनून के आगे उनकी शारीरिक कमी ने हार मान ली और उन्होंने ऐसे कमाल कर दिखाए जिन्हें देख दुनिया ने कहा, ये तो बेमिसाल हैं।
आइंस्टीन
भौतिकी के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक प्रयोग करने वाले आइंस्टीन को भला कौन नहीं जानता, पर क्या आप जानते हैं कि उन्हें मानसिक रुप से काफी कमजोर माना जाता था? इतना ही नहीं, वह अपनी प्राथमिक स्तर की पढ़ाई तक पूरी नहीं कर पाए थे लेकिन आज उनका नाम दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में शामिल है।
स्टीफन हॉकिंग
एक ऐसे इंसान जो न चल सकते हैं, न बोल सकते हैं, लेकिन उन्होंने दुनिया को निर्माण का सिद्धांत दिया।
हेलन केलर
एक ऐसे इंसान से क्या उम्मीद की जा सकती है जो न देख सकता है और न सुन सकता है, लेकिन हेलन केलर अपनी इस शारीरिक कमी के बावजूद दुनिया की पहली विकलांग ग्रेजुएट बनीं और उन्होंने अपनी पहचान अमेरिका की शीर्ष लेखक और शिक्षक के रुप में बनाई।
सुधा चंद्रन
प्रसिद्ध एक्ट्रेस और नृत्यांगना सुधा चंद्रन का एक पैर नकली है, बावजूद इसके उन्होंने नृत्य में महारथ हासिल की है।
रविंद्र जैन
रामानंद सागर की रामायण के गीतों को अपनी आवाज़ देने वाले गायक रविंद्र जैन देखने में असमर्थ हैं, लेकिन उनके गाए भजनों ने हर घर और हर मन में अपनी जगह बनायी।
टॉम क्रूज
हॉलीवुड एक्टर टॉम क्रूज की Fan Following से कोई अऩजान नहीं है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वो डॉयलेक्सिया से पीड़ित थे, एक ऐसी बीमारी जिसमें इंसान को कुछ भी सीखने में दिक्कत होती है।
गिरीश शर्मा
बचपन में ट्रेन हादसे में अपना एक पैर खोने के बावजूद गिरीश नहीं रुके और मेहनत करते रहे। ये उनके जोश और जुनून का ही कमाल है कि आज वो सिर्फ एक पैर के सहारे खड़े होकर बैडमिंटन खेलते हैं।
शेखर नाइक
भारत को टी 20 ब्लाइंड वर्ल्ड कप जिताने वाले शेखर नाइक जन्म से ही देख नहीं पाते थे, लेकिन उन्होंने आंखों के अंधेरे को ज़िंदगी के अंधेरे में नहीं बदलने दिया। तमाम तरह की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करते हुए शेखर ने क्रिकेट की दुनिया में अपनी पहचान बनाई।
एच रामकृष्ण
बचपन में पोलियो से ग्रस्त होने के बाद रामकृष्ण को स्कूल के एडमिशन तक में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। दिव्यांग होने के कारण कई बार नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा लेकिन संघर्ष से सफलता के रास्ते को तय करते हुए चालीस साल की उम्र में उनकी अपनी खुद की कंपनी है। एसएस म्यूज़िक टीवी के ज़रिए वे टैलेंट को प्लेटफॉर्म देने का काम भी कर रहे हैं।
अरुणिमा सिन्हा
अरुणिमा को कुछ चोरों ने चलती ट्रेन से धक्का दे दिया था जिसमें उनका एक पैर चला गया। लेकिन इस हादसे के दो साल बाद ही वो माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली पहली दिव्यांग महिला बनीं।
… ये तो चंद नाम हैं जिन्होंने अपने अंदर की हर कमजोरी को कुछ इस अंदाज़ में अपनी ताकत बनाया कि दुनिया दंग हो देखती रह गई।
आने वाले 3 दिसंबर को World Disability Day है, तो आइए इस दिन ख़ुद से वादा करें कि हालात कैसे भी हों, सामने कितनी भी मुश्किलें हो खड़ीं, हम हारेंगे नहीं, हम थकेंगे नहीं, हम रुकेंगे नहीं। क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत, बस इसी में छिपा है जीवन संगीत।