भालका तीर्थ, जहाँ श्रीकृष्ण ने त्यागी थी देह


भारतवर्ष में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं जो हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्व रखते हैं। ऐसा ही एक स्थान गुजरात के वेरावल में सोमनाथ मंदिर से करीब 5 किलोमीटर स्थित है, जिसका नाम भालका तीर्थ स्थल है। मैंने स्वयं इस तीर्थ स्थान के दर्शन किए हैं। वहां जाकर स्वयं आपको अहसास होने लगता है कि जो भी यहां घटित हुआ है वो सत्य है। इस बात का प्रमाण वहां स्थित हर एक वस्तु से मिलता है।
5 हजार वर्ष पुराना पीपल
मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में श्री कृष्ण ने अपनी का देह त्याग किया था। लोगों का मानना है कि भगवान कृष्ण यहां आने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस स्थान पर एक पीपल का पेड़ भी है जो करीब 5 हजार साल पुराना है और अभी तक हरा-भरा है। यहां आने वाले लोग इस पेड़ की भी पूजा करते हैं। वर्तमान में इस पीपल के पेड़ को इस सुंदर मंदिर में संरक्षित रखा गया है।

क्यों नाम पड़ा भालका तीर्थ?
बताया जाता है कि यहाँ पर विश्राम करते समय भगवान श्री कृष्ण के बाएं पैर में शिकारी ने गलती से बाण मारा था, जिसके पश्चात् उन्होंने पृथ्वी पर अपनी लीला समाप्त करते हुए निजधाम को प्रस्थान किया था। बाण या तीर को भल्ल भी कहा जाता है, अतः इस तीर्थ स्थल को भालका तीर्थ के नाम से जाना गया है।
पौराणिक कथा
महाभारत में एक शिकारी की कहानी के बारे में बताता गया है जो कि दुनिया से श्रीकृष्ण के प्रस्थान के लिए एक साधन के रूप में जाना जाता है। श्रीकृष्ण जंगल में पीपल के एक पेड़ के नीचे ध्यान मुद्रा में लेटे हुए थे। तभी जरा नाम के शिकारी ने भगवान कृष्ण के बाएं पैर में आंशिक रूप से दिखी मणि को हिरण की आँख समझ कर तीर से निशाना लगाया। बाण भगवान श्रीकृष्ण के पैर में लगा और खून बहने लगा। शिकारी को तब अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने भगवान से क्षमा माँगी। भील (शिकारी) जरा को समझाते हुए कृष्ण ने कहा कि व्यर्थ ही विलाप कर रहे हो। जो भी हुआ वो नियति है। बाण लगने से घायल भगवान कृष्ण भालका से थोड़ी दूर पर स्थित हिरण नदी के किनारे पहुंचे। कहा जाता है कि उसी जगह पर भगवान का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।
हिरण नदी
हिरण नदी सोमनाथ से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। यहां नदी के किनारे आज भी भगवान के चरणों के निशान मौजूद हैं। इस जगह को आज दुनिया भर में देहोत्सर्ग तीर्थ के नाम से जाना जाता है। यह घटना पृथ्वी से श्रीकृष्ण के प्रस्थान का प्रतीक है। यह घटना द्वापर युग के अंत का संकेत थी।
