सड़क 2 | डॉयलॉग्स घिसे—पिटे, कहानी लुटी—पिटी, अभिनय कम, नौटंकी ज्यादा
STAR | ** (दो स्टार)
लंबे अर्से बाद महेश भट्ट ने डायरेक्टर के तौर पर ‘सड़क 2’ से वापसी की है। यह फिल्म 1991 में आई फिल्म ‘सड़क’ का सीक्वल है।
पिछली फिल्म सड़क काफी पसंद की गई थी हालांकि इस बार सड़क 2 फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने के बाद ही इसे सुशांत केस के कारण काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। लेकिन, अब जबकि 28 अगस्त को यह फिल्म रिलीज हो चुकी है तो देखने के बाद लगता है कि इसके विरोध के लिए अलग से किसी वजह की जरूरत नहीं है। यह फिल्म ही बेवजह है।
उदास शुरुआत
‘सड़क 2’ की कहानी बेहद उदासीपूर्ण माहौल से शुरू होती है जिसमें रवि अपनी मरहूम पत्नी की यादों में जी रहा है। वह आत्महत्या की कोशिश करता है लेकिन कर नहीं पाता। आर्या भी तूफान की तरह रवि की जिंदगी में आती है। कहानी में जल्दी-जल्दी ट्विस्ट आते हैं और इन्हीं में फिल्म का पूरा स्क्रीनप्ले पटरी से उतर जाता है।
पुराने से डायलॉग्स
फिल्म के डायलॉग्स पुराने से लगते हैं और ऑडियंस को बोर करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि मेकर्स ने फिल्म को लिखने में ज्यादा मेहनत नहीं की है और उन्हें लगता है कि ऑडियंस नॉस्टेलजिया पर ही फिल्म देख लेगी। नई ऑडियंस के एक बड़े वर्ग ने ‘सड़क’ का पहला पार्ट देखा भी नहीं है। और आज की ऑडियंस बहुत स्मार्ट हो गई है, उसे सिर्फ़ देख दिखावा नहीं, स्टोरी लाइन भी दमदार चाहिए।फिल्म के विलेन जरूरत से ज्यादा ड्रामा करते नज़र आते हैं, और एक्शन नकली।
अभिनय कुछ खास नहीं
अपनी बेहतरीन ऐक्टिंग के लिए जानी जाने वाली आलिया भट्ट कुछ इमोशनल सीन के अलावा इस बार निराश करती हैं। आदित्य रॉय कपूर को करने के लिए कुछ खास मिला नहीं है। संजय दत्त के कुछ इमोशनल सीन अच्छे हैं लेकिन उनके किरदार की भी अपनी सीमाएं हैं। आलिया के पिता के किरदार में जिशू सेनगुप्ता और ढोंगी धर्मगुरु के किरदार में मकरंद देशपांडे जरूर प्रभाव छोड़ते हैं लेकिन मकरंद देशपांडे जैसे मंझे हुए कलाकार से भी ओवर ऐक्टिंग करवा ली गई है और बहुत से अच्छे सीन भी अजीब लगने लगते हैं।
निर्देशन भी कमजोर
एक बेहतरीन डायरेक्टर के तौर पर महेश भट्ट ने अच्छी फिल्में बनाई हैं लेकिन इस बार वह पूरी तरह निराश करते हैं। महेश भट्ट ने 21 साल पहले फिल्म ‘कारतूस’ से रिटायरमेंट लिया और इस बार जो कुछ उन्होंने अपने निर्देशन से लोड किया है, वह बैकफायर कर गया है। वहां भी संजय दत्त थे, यहां भी संजय दत्त हैं। लेकिन, ये संजय दत्त दर्शकों को बेगाना सा लगता है। उसकी आंखें कहीं और देखती हैं, उसका दिमाग कुछ और सोचता है।
एक ही कमाल … ‘इश्क कमाल’
महेश भट्ट की फिल्मों के गाने हाईलाइट होते रहे हैं, इस बार भी गानों में अंकित तिवारी, जीत गांगुली, सुनीलजीत, समिध मुखर्जी, उर्वी आदि ने जोर पूरा लगाया है। जावेद अली का गाया ‘इश्क कमाल’ और ‘तुम से ही’ कमाल कर भी जाते हैं लेकिन बाकी गाने असर नहीं छोड़ पाते।
… तो कुल मिलाकर सिनेमा का एक खाका है। किरदार है। रात और दिन में घूमता कैमरा है। पर कहानी के नाम पर कुछ भी नहीं है। अभिनय के नाम पर आलिया भट्ट की कोशिशे हैं। वो हाईवे जैसा कुछ करना तो चाहती हैं लेकिन उनके चेहरे पर एक स्थायी थकान छप चुकी है। चेहरे की मासूमियत वह खो चुकी हैं। संजय दत्त का शरीर उनका साथ नहीं देता अब। उनके लायक कहानी लिखना धीरे—धीरे लेखकों के लिए चुनौती हो जाएगा। आदित्य रॉय कपूर ने लगता है ये फिल्म करके ‘आशिकी 2’ में काम मिलने का अहसान उतार दिया है। ‘मलंग’ के बाद से उनसे कुछ बेहतर कर पाने की उम्मीद बंधी थी लेकिन मामला फिर ‘कलंक’ जैसा हो गया है। मकरंद देशपांडे ने जरूर फिर से सिनेमा में अपनी वापसी की उम्मीद जगाई है। किरदार भी इस बार उन्हें दमदार मिला और अदाकारी का दम भी वह दिखाने में सफल रहे। फिल्म में गुलशन ग्रोवर भी हैं, ये याद रखना होता है। सिनेमाघरों की बजाय सीधे ओटीटी पर रिलीज डिजनी प्लस हॉटस्टार की फिल्मों में ‘सड़क 2’ सबसे कमजोर फिल्म निकली है।
