दक्षिण भारत से पहले प्रधानमंत्री थे पी वी नरसिम्हा राव | Birth Anniversary Special

पामुलापति वेंकट राव यानी पी वी नरसिम्हा राव की आज 100वीं जयंती है। देश के दसवें प्रधानमंत्री की जन्मशती पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। आइए पूर्व प्रधानमंत्री की ज़िंदगी के कुछ देखे अनदेखे पहलुओं पर डालते हैं एक नज़र।
एक कार्यक्रम में पीवी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी।
  • 28 जून 1921 को तेलंगाना के करीमनगर में जन्मे पीवी नरसिम्हा राव दक्षिण भारत से पहले प्रधानमंत्री थे।
  • सियासत में आने से पहले वे कृषि विशेषज्ञ और वकील थे।
  • 1962 से लेकर 1971 तक वे आंध्र प्रदेश के मंत्रिमंडल में रहे।
  • जहां उन्होंने जिन विभागो को संभाला, वे इस प्रकार हैं-
  • 1962 से 1964 तक आंध्र प्रदेश सरकार में कानून एवं सूचना मंत्री।
  • 1964 से 1967 तक कानून एवं विधि मंत्री।
  • 1967 स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री।
  • 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे।
  • 1971 से लेकर 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री।
  • इसके बाद उनका सियासी सफर कुछ इस तरह आगे बढ़ा।
  • 1975 से 1976 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव रहे।
  • 1968 से 1974 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगु अकादमी के अध्यक्ष रहे, साथ ही दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष भी रहे।
  • 1977 से 1984 तक वे लोकसभा के सदस्य रहे।
  • दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए उन्हें चुना गया।
  • भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे।
  • 1980 से लेकर 1984 तक वे विदेश मंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए गृह मंत्री और फिर रक्षा मंत्री का पदभार भी संभाला।
  • 5 नवंबर 1984 को योजना मंत्रालय का अतिरिक्त पदभार संभाला और साल 1985 में मानव संसाधन विकास मंत्री के रुप में उन्होंने पदभार संभाला।
  • 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधन के बाद उन्हें पीएम बनाया गया।
  • लाइसेंस राज की समाप्ति और आर्थिक सुधारों की नीति की शुरुआत का श्रेय उन्हीं को जाता है।
  • पीवी नरसिम्हा राव ने जब देश की बागडोर संभाली तब देश कठिन आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहा था, तब उन्होंने आरबीआई के गवर्नर मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया और उनका ये फैसला देश हित में बिल्कुल सही साबित हुआ।
  • उनकी आर्थिक नीतियों से जुड़े फैसलों की वजह से उन्हें “फादर ऑफ इंडियन इकोनॉमिक रिफॉर्म्स” भी कहा जाता है.

सियासत से अलग

  • हिंदी, अंग्रेजी, तेलुगु, मराठी, स्पेनिश समेत वे सत्रह भाषाओं को जानते थे।
  • संगीत, साहित्य और कला से भी उनका ख़ासा लगाव रहा।
  • उन्होंने कई लेख लिखे साथ ही साहित्य की कई पुस्तकों का अनुवाद भी किया।
  • उनकी पत्नी का निधन उनके जीवनकाल में ही हो गया था।
  • श्री पीवी नरसिम्हा राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं।
  • जून 2004 में किडनी, दिल और फेफड़ों में तकलीफ की शिकायत के बाद उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया। जिसके बाद उन्हें यूरीन की नली में इन्फेक्शन हो गया। इस दौरान उनका स्वभाव काफी चिड़चिड़ा हो गया था। उन्होंने अपनी बेटी से यहां तक कह दिया कि ऐसे जीने से क्या फायदा, तुम लोग आखिर क्यों इसे जबरन खींच रहे हो।
  • इसके बाद उन्होंने खाना पीना बिल्कुल छोड़ दिया था।
  • अपने अंतिम समय में अपने बेटे से उन्होंने पूछा, बेटा मैं कहां हूं, उनके बेटे राजेश्वर कुछ जवाब देते इससे पहले उन्होंन कहा, वंगारा में हूं, मां के कमरे में। वंगारा श्री राव के गांव का नाम है।
  • 23 दिसंबर, 2004 को लंबी बीमारी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली।

कुछ विवाद

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वेंगल राव ने अपनी ऑटोबॉयोग्राफी ‘ना जीविता कथा’ (My Life Story) में पीवी नरसिम्हा राव और इंदिरा गांधी से जुड़ी एक घटना का ज़िक्र करते हुए लिखा है, ” वो इंदिराजी से मुलाकात करने गए दिल्ली गए थे. इंदिराजी बुरी तरह झुंझलाई हुईं थीं. पीवी नरसिम्हा राव का नाम लेते ही फट पड़ीं।” वेंगल राव ने किताब में लिखा, “उन्होंने इंदिराजी को पार्टी के किसी वरिष्ठ मंत्री पर इस तरह झुंझलाते हुए कम देखा था। इंदिरा जी ने कहा, “मैं उम्मीद नहीं करती थी कि वह इतने चरित्रहीन होंगे. जबकि उनके इतने बड़े बच्चे हैं”। वेंगल ने आत्मकथा में ये भी लिखा, “नरसिम्हा राव के बड़े बेटे पीवी रंगाराव अक्सर पिता के अफेयर की शिकायत लेकर दिल्ली पहुंचते थे। उन्होंने कई बार इंदिरा से मिलकर पिता की शिकायत की थी।”विजय सीतापति अपनी किताब “द हाफ लॉयन” में भी इस घटना का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं, “राव के रिश्ते और भी कई महिलाओं से थे लेकिन छोटे-छोटे टुकड़ों में। सबसे ज्यादा प्रगाढ़ता लक्ष्मी कांताम्मा नाम की एक महिला नेता से थी।” हालांकि बाद में कांताम्मा ने संन्यास ले लिया। बताया जाता है कि इसके बाद पी वी नरसिम्हा राव भी गांव लौटने की तैयारी में थे, लेकिन राजीव गांधी की आकस्मिक मौत के बाद उन्हें रुकना पड़ा।
प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद नरसिम्हा राव ने एक आत्मकथा लिखी, जिसका नाम है ‘इनसाइडर’। इस किताब को लिखने के लिए उस ज़माने में उन्हें बतौर एडवांस एक लाख रुपए मिले थे।

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने ज़िंदगी के सभी दौर देखे, फिर चाहे वो सियासी सफलता हो या फिर पार्टी की ओर से अनदेखी का दर्द। भले ही उनके नाम के साथ कुछ विवाद भी जुड़े लेकिन फिर भी उनकी पहचान हमेशा एक सफल और सुलझे हुए सियासतदां के रुप में होगी, जिनकी नीतियों ने देश को एक नए आयाम तक पहुंचाया।

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