मेरे भी कई ख्वाब थे,
उन ख्वाबों में
गगन को छू लेने जैसे अहसास थे
पर,
हकीकत की दुनिया बड़ी कठिन थी
ये भूख भी बड़ी जालिम निकली
वो रोटी जो सामने थी खड़ी
कलम की ज़रूरत से थी बड़ी
रोटी की खोज लेकर जहां जाती है
उम्र बहुत बड़ी हो जाती है
अक्सर रोटी की तलाश में
प्रतिभाएं गुम हो जाती हैं
ना जाने कितने ही कवि, साहित्यकार
वैज्ञानिक और डॉक्टर
खो जाते हैं रोटी की खोज में
परिश्रम करना मुकद्दर है मेरा
मैं परिश्रम से डरती नहीं
ये भी जानती हूं मैं
कि रोटी की खोज से बड़ी है
ज्ञान की खोज
पर,
उस खोज की कीमत बड़ी है
और,
रोटी की कीमत उस पर भारी है।
(बनारस की रहने वालीं सौम्या दर्शन की सामाजिक—साहित्यिक—धार्मिक अभिरुचि है और वह इन विषयों पर मुखर रहती हैं। World Day Against Child Labour पर उन्होंने UNBIASED INDIA के साथ अपनी यह रचना साझा की है।)
भूख से बड़ा वाकई कुछ नहीं । बेहद भावुक प्रस्तुति।